ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी
हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं
वो ग़ैर की बांहों में आराम से सोते हैं
उस मैकदे की राह मे गिर जाऊं न कहीं
अब मेरा हाथ थाम तो लो मैं नशे में हूं
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियां अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं
कहने को वो हसीन थे आंखें थीं बेवफ़ा
दामन मेरी नज़र से बचा कर चले गए
जाने क्यों तेज़ हुई जाती है दिल की धड़कन
चुटकियां लेती है क्यों सीने में मीठी सी चुभन
किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मेरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूं तो मिटा क्यूं नहीं देते
हम अश्क़ जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं
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