आंखों से आंसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमां ये घर में आएं तो चुभता नहीं धुआं
यूं भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
तुम्हारी ख़ुश्क सी आंखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएं, भेजी हैं
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहां होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
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