आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान,
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले,
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के,
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें,
दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें,
दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब,
आज तुम याद बे-हिसाब आए
उतरे थे कभी ‘फ़ैज़’ वो आईना-ए-दिल में,
आलम है वही आज भी हैरानी-ए-दिल का
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा