किसी के साथ इतनी उम्मीद मत रखना,
कि उम्मीद के साथ खुद भी टूट जाओ
किसी ने पूछा,
इतना अच्छा कैसे लिख लेते हो,
मैंने कहा दिल तोड़ना पड़ता है,
लफ्जों को जोड़ने से पहले
सांसे किसी का इंतजार नहीं करती,
ये चलते चलते चली ही जाती है,
इसलिए मैं किसी का इंतजार नहीं करता
मैं मुसाफिर हूं कोई ठिकाना न रहा,
बसर करता हूं दूर किसी वीराने में,
मैं महफिल की ख्वाहिश में था कभी,
अब चाहत ही न रही इस दीवाने में
जब सब कुछ अकेले बरदाश,
करने की आदत हो जाए,
तब फर्क नहीं पड़ता,
कौन साथ है और कौन नहीं
बड़े शौक से उतरे थे,
हम समंदर-ए-इश्क में,
एक लहर ने ऐसा डुबोया कि
अब तक किनारा ना मिला
अगर आप किसी से प्रेम करते हैं,
तो उसे बता दीजिये,
क्यूंकि अनकही बातें दिल को सबसे ज़्यादा ठेस पहुंचाती हैं
Majrooh Sultanpuri Poetry: मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से 8 चुनिंदा शेर