Ahmad Faraz Poetry: “ज़िंदगी से यही गिला है मुझे…” पढ़िए अहमद फ़राज़ के बेमिसाल शेर - Punjab Kesari
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Ahmad Faraz Poetry: “ज़िंदगी से यही गिला है मुझे…” पढ़िए अहमद फ़राज़ के बेमिसाल शेर

Ahmad Faraz Poetry: इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब, इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ

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ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

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 डूबते डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा

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जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं

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इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम

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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

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यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ

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जब भी दिल खोल के रोए होंगे
लोग आराम से सोए होंगे

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ये कौन फिर से उन्हीं रास्तों में छोड़ गया
अभी अभी तो अज़ाब-ए-सफ़र से निकला था

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कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

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