आई है कुछ न पूछ क़यामत कहां कहां
उफ़ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहां कहां
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आश्ना को क्या समझ बैठे थे हम
कुछ भी अयां निहां न था कोई ज़मां मकां न था
देर थी इक निगाह की फिर ये जहां जहां न था
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
बात निकले बात से जैसे वो था तेरा बयां
नाम तेरा दास्तां-दर-दास्तां बनता गया
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया
हर बार छुपा कोई हर बार नज़र आया
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है
बस्तियां ढूंढ रही हैं उन्हें वीरानों में
वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में
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