जम्मू एवं कश्मीर में फिर महागठबंधन संभव नहीं - Punjab Kesari
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जम्मू एवं कश्मीर में फिर महागठबंधन संभव नहीं

विधायकों पर लगाम लगाने या बगावती होने से बचाने के लिए विधानसभा का भंग होना पीडीपी, कांग्रेस और

जम्मू एवं कश्मीर में महागठबंधन के प्रयास में जुटी पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की योजना भले ही विफल हो गई हो, लेकिन इनका अब फिर से एक साथ आना अंसभव हो गया है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर बुधवार रात तीनों दलों की आशा को निराशा में बदल दिया। जो दशकों तक एक-दूसरे के साथ रहे, मतभेदों को भुलाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस को सत्ता से दूर रखने के लिए हाथ मिलाने वाले थे। हालांकि राज्यपाल ने राज्य में जारी राजनीतिक उठापटक पर विरामचिन्ह लगा दिया।

राजनीति संभावनाओं की कला मानी जाती है, जिसका जीता-जागता नमूना कट्टर प्रतिद्वंद्वियों पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने हाथ मिलाकर प्रदर्शित किया, ताकि राज्य की त्रिशंकु विधानसभा में गठबंधन सरकार बनाई जा सके। बुधवार को राज्य में बड़ी तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदले, जिसमें मीडिया के ऊपर से नीचे के लोग यह जानने में जुटे रहे कि हो क्या रहा है। वरिष्ठ पीडीपी नेता और पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी नेशनल कांफ्रेंस के बाहरी समर्थन से पीडीपी और कांग्रेस के बीच नियत गठबंधन में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में उभरकर सामने आए।

फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने इस राजनीतिक घमासान में मुख्यमंत्री पद स्वीकारने से मना कर दिया। जब पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को 87 सदस्यीय विधानसभा में से 56 विधायकों का समर्थन होने का दावा कर रही थीं, तो वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद कह रहे थे कि गठबंधन बनाने पर चर्चा चल रही है। आजाद ने कहा कि तीनों दलों का साथ आना का विचार अभी शुरुआती स्तर पर है, क्योंकि महागठबंधन की रूपरेखा पर कार्य करने के लिए गंभीर विचार-विमर्श अभी बाकी है।

 पीडीपी में पहले से ही बगावत के सुर उठते दिखाई दे रहे थे, जहां कम से कम चार या पांच विधायक महबूबा मुफ्ती के खिलाफ खुली बगावत करने के रूप में उभर रहे थे। ऐसी खबरें आ रही थीं कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के कुछ विधायक भाजपा समर्थित सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस के नेतृत्व वाले तीसरे मोर्चे के साथ जा सकते हैं। अपने विधायकों पर लगाम लगाने या बगावती होने से बचाने के लिए विधानसभा का भंग होना पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के लिए सुविधाजनक रहा। पंडितों का कहना है कि अगले विधानसभा चुनावों में लड़ने के लिए तीनों दलों द्वारा इस तरह का महागठबंधन बनने की संभावना नहीं है।

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