Alert ! यूरोप-अमेरिका से 5 गुना अ‌धिक ब्लैक कार्बन ले रहे दिल्लीवासी - Punjab Kesari
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Alert ! यूरोप-अमेरिका से 5 गुना अ‌धिक ब्लैक कार्बन ले रहे दिल्लीवासी

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नई दिल्ली : दिल्लीवासी जहां एक ओर लगातार बढ़ते तापमान और प्रदूषण की दोहरी मार झेल रहे थे तो वहीं एक परेशान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में कुछ ऐसी कुछ बातें पाई गई हैं जो दिल्लीवालों को चिंता में डाल सकती है।

एटमॉस्फिअरिक इन्वाइरनमेंट जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि दिल्लीवालें यूरोपीय और अमेरिकी देशों की तुलना में पांच गुना तक अधिक ब्लैक कार्बन ले रहे हैं। दिल्ली वालों में कार से सफर करने की बढ़ती आदत इसके लिए जिम्मेदार है।

9 गुना अधिक प्रदूषण झेलते हैं एशिया के कार चालक
ये रिसर्च माइक्रोइन्वाइरनमेंट पर की गई जिसमें पैदल चलने वाले, कार चलाने वाले, टू वीलर पर चलने वालों को शामिल किया गया। इन सभी पर प्रदूषण के खतरे को लेकर रिसर्च की गई। रिपोर्ट के मुताबिक एशियाई देशों में भीड़भाड़ वाली सड़कों पर पैदल चलने वाले यूरोप और अमेरिकी देशों के लोगों की तुलना में 1.6 गुना तक अधिक फाइन पार्टिकल की चपेट में आ रहे हैं। एशिया के कार चालक यूरोपियन और अमेरिकन के मुकाबले 9 गुना अधिक प्रदूषण झेलते हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में 2010 में 47 लाख कारें थी, जो 2030 तक बढ़कर 2 करोड़ 56 लाख तक हो जाएंगी। हॉन्ग कॉन्ग की एक स्टडी के अनुसार नई दिल्ली में कार से औसतन ब्लैक कार्बन यूरोप और नार्थ अमेरिका की तुलना में पांच गुना अधिक है। वहीं डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के विकासशील देशों में समय से पूर्व होने वाली मौतों में 88 प्रतिशत प्रदूषित हवा की वजह से हो रही हैं।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर उठाने चाहिए कदम
ईपीसीए के चेयरमैन भूरे लाल के अनुसार इसमें संदेह नहीं कि दिल्ली में कारों की बढ़ती संख्या प्रदूषण की बड़ी वजह है। यही वजह है कि ईपीसीए बार-बार पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुधारने की बात कर रही है। साथ ही पुरानी गाड़ियों व प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों पर भी कड़े कदम उठाने की सिफारिश करती रही है।

सूर्रे यूनिवर्सिटी के ग्लोबल सेंटर फॉर क्लीन एयर रिसर्च के निदेशक प्रशांत कुमार ने इस रिपोर्ट के अंत में बताया है कि रिसर्च में सामने आए नतीजों को लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है। विभिन्न रिसर्च में कई तरह की जानकारियां सामने आ रही हैं। एशियाई देशों में भी शहरी क्षेत्रों की स्थिति अधिक गंभीर है। ट्रांसपोर्ट के साधनों पर भी अलग-अलग अध्ययन होने की जरूरत है।

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