'सहमति से बना रिश्ता टूटने पर रेप का केस नहीं...', Supreme Court ने सुनाया अहम फैसला - Punjab Kesari
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‘सहमति से बना रिश्ता टूटने पर रेप का केस नहीं…’, Supreme Court ने सुनाया अहम फैसला

सहमति से बने रिश्ते पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहमति से बने वयस्क संबंध खत्म होने पर रेप का केस नहीं बन सकता, जिससे अदालतों पर अनावश्यक दबाव और आरोपी की सामाजिक प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट के अनुसार, अगर दो वयस्कों के बीच सहमति से बना रिश्ता अगर खत्म हो जाए, तो रेप का मामला नहीं बन सकता. यह टिप्पणी जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने की.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा कि ऐसे मुकदमे अदालतों पर बेवजह दबाव डालते हैं और साथ ही आरोपी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचाते हैं. कोर्ट ने यह भी दोहराया कि शादी का वादा तोड़ना, जब तक वह जानबूझकर धोखे के इरादे से न हो, झूठा वादा नहीं कहा जा सकता.

इस मामले की सुनवाई पर सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देते हुए महाराष्ट्र के अमोल भगवान नेहुल पर दर्ज रेप का मामला भी रद्द कर दिया. आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें आपराधिक प्रक्रिया को रद्द करने से मना कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए आपराधिक कार्यवाही खत्म कर दी.

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लिव-इन रिलेशन के बाद रेप का आरोप भी अवैध

इससे पहले मार्च में भी सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद रेप का आरोप लगाना उचित नहीं है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 16 वर्षों तक साथ रहने के बाद सिर्फ यह कहना कि शादी का झांसा दिया गया, पर्याप्त नहीं है जब तक यह साबित न हो कि शुरू से ही शादी करने की कोई मंशा नहीं थी.

पढ़ी-लिखी महिला इतने समय तक…

इस मामले में जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा था कि यदि कोई शिक्षित और आत्मनिर्भर महिला इतने सालों तक संबंध में रहती है, तो इसे धोखा या जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता. यह एक टूटे हुए लिव-इन रिलेशनशिप का मामला है, न कि बलात्कार का. कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि इतने सालों तक किसी रिश्ते में रहने के बाद अचानक आरोप क्यों लगाए गए.

शादी का मूल उद्देश्य का किया जिक्र

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी जोड़ा था कि विवाह केवल कानूनी अनुबंध नहीं है, बल्कि यह भरोसे, समानता और साझे अनुभवों पर आधारित होता है. यदि ये मूल्य लंबे समय तक मौजूद न रहें, तो शादी सिर्फ दस्तावेज़ों तक सिमट जाती है. शादी का असली उद्देश्य दोनों पक्षों की खुशी और सम्मान है, न कि मानसिक तनाव और विवाद.

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