10 साल के बच्चे ने कर दिखाया ऐसा काम जिसे सरकार नहीं कर सकी 60 सालों में भी पूरा - Punjab Kesari
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10 साल के बच्चे ने कर दिखाया ऐसा काम जिसे सरकार नहीं कर सकी 60 सालों में भी पूरा

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दक्षिण बस्तर में हालात बड़े ही नाजुक है । इस इलाके में न तो सड़क है और नहीं ही कोई व्यवस्था कोई प्रशासन भी कुछ नहीं कर सका। हम आज बात कर रहें हैं पंचायत मरकानार की । निर्मल गागड़ा (10) दरअसल इस सड़क से होकर कतियाररास पैदल स्कूल आता है। वो सड़क पर फिसल कर गिर गया। वह ऐसे सड़क पर गिरा और उसके साथ बाकी उसके साथ आने वाले बच्चों का गिरना अच्छा नहीं लगा ।

मां ने बुलाया खाना-खाने के लिए
वह हर रोज की तरह शनिवार को स्कूल गया हुआ था। स्कूल से आ रहा था तो देखा गांव के लोग श्रमदान कर सड़क को बनाने में लगे हुए हैं। वह घर गया और जल्दी से बिना खाना खाए वापस आया तो वह भी सीधा काम में जुट गया। मां के बहुत बार आवाज लगने पर भी निर्मल ने खाना नहीं खाया और बोल कर चला गया मां सड़क बन रही है। इस सड़क पर हर रोज गिरता हूं ठीक करूंगा गंदे कपड़ों में स्कूल तो नहीं जाना पड़ेगा। ये बच्चा पूरी तल्लीनता से काम में जुट गया। खुद फावड़े से तगाड़ी को भरता और कच्ची सड़क के गड्ढों में मिट्टी डालने में जुट गया।

ग्रामीणों का कहना था कई बार अधिकारियों से इस समस्या को लेकर आवेदन दिया लेकिन प्रशासन ने कोई करवाई नहीं की और अनसुना कर दिया । नगर से महज पांच किमी दूर इस पंचायत का यह हाल है तो अंदरूनी क्षेत्रों में विकास का अंदाजा लगाया जा सकता है। सड़क से संबंधित जानकारी के लिए आरईएस के अधिकारी संतोष नाग को फोन लगाया, लेकिन उनका फोन नहीं लगने से उनका पक्ष नहीं आ सका।

गांवो वालो ने पूछा सवाल
निर्मल इतनी मेहनत से वह सड़क बना रहा था तो गांव वालो ने पूछा तुम्हें क्या इसकी जरूरत पड़ गई तो निर्मल ने कहा कि मैं तीन बार बरसात में फिसल कर गिर गया हूं। मेरे साथ आने वाले बाकी बच्चे भी गिर जाते हैं। इसलिए सड़क को बना रहा हूं। उसने कहा सड़क बनेगी तो फिसल कर नहीं गिरगें न ही कपड़े गंदे होगें। इसके बाद वह फिर से वही कुदाल और तगाड़ी पकड़ कर मिट्टी डालने में जुट गया। इस सड़क पर करीब दो हजार की आबादी आश्रित है। यहां न माओवादी दहशत और न ही कोई अड़चन।। इसके बाद भी प्रशासन इस सड़क को नहीं बना सका। तीन साल पहले ठेका हुआ था मरम्मत भर कराने के बाद ठेकेदार ने काम छोड़ दिया। हवाला हर बार माओवादी दहशत का बताया जाता है। सारा खेल अधिकारी व ठेकेदारों की मिलीभगत से हो जाता है। इसके बाद बड़ी रकम खर्च होती है।

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