Rohingya Refugees: रोहिंग्या शरणार्थियों की रिहाई के लिए Supreme Court में दायर हुआ जनहित याचिका
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Rohingya refugees: रोहिंग्या शरणार्थियों की रिहाई के लिए Supreme Court में दायर हुआ जनहित याचिका

Rohingya refugees

Rohingya refugees: सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। इसमें दो साल या उससे अधिक समय से अनिश्चित काल के लिए हिरासत में रखे गए रोहिंग्या शरणार्थियों को रिहा करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।

Highlights

  • Rohingya refugees की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
  • रोहिंग्या बंदियों को रिहा करने की मांग
  • मामले की सुनवाई 12 अगस्त को होगी

याचिका में दो साल से अधिक समय से बंद रोहिंग्या बंदियों को रिहा करने की मांग

अधिवक्ता उज्जयिनी चटर्जी द्वारा दायर जनहित याचिका में कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं का उल्लंघन करके भारत में शरण चाहने वालों और युवाओं, महिलाओं और बच्चों सहित शरणार्थियों(Rohingya refugees) की अनिश्चितकालीन हिरासत को चुनौती दी गई है। याचिका में दो साल से अधिक समय से बंद रोहिंग्या बंदियों को रिहा करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

Rohingya refugees को तीसरे देश में पुनर्वास की व्यवस्था करने का अनुरोध

इसके अलावा, इसमें देश भर में अनिश्चित काल तक हिरासत में रखे गए सभी रोहिंग्याओं(Rohingya refugees) के नाम, लिंग और उम्र के साथ-साथ उनके हिरासत आदेशों, निर्वासन के संबंध में म्यांमार के दूतावास के साथ अंतिम संचार, व्यक्तिगत डेटा, मूल्यांकन फॉर्म और शरणार्थी स्थिति की अस्वीकृति के अंतिम आदेशों की जानकारी मांगी गई है। याचिका में मानक संचालन प्रक्रिया, 2019 के अनुसार तीन महीने के भीतर हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं के शरणार्थी स्थिति के दावों का आकलन करने या तो रोहिंग्याओं(Rohingya refugees) को दीर्घकालिक वीजा देने या उनके तीसरे देश में पुनर्वास की व्यवस्था करने का भी अनुरोध किया गया है।

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‘हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं को कभी भी कोई नोटिस नहीं दिया गया’

दक्षिण एशियाई संघर्षों और शांति-निर्माण की विशेषज्ञ व विद्वान याचिकाकर्ता रीता मनचंदा ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि हिरासत में लिए गए रोहिंग्याओं को कभी भी कोई नोटिस नहीं दिया गया या शरणार्थी होने के मामले को पेश करने का मौका नहीं दिया गया। याचिका में कहा गया है, रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि राज्यविहीन होने के बाद भी रोहिंग्याओं को कोई पहचान दस्तावेज, एलटीवी या तीसरे देश में पुनर्वास प्रदान नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, इस मामले की सुनवाई 12 अगस्त को CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा की जाएगी।

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