नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में रथ यात्रा निकालने की अनुमति के लिये भाजपा की याचिका पर राज्य सरकार से मंगलवार को जवाब मांगा। भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने इस याचिका में कलकत्ता उच्च न्यायालय की खंडपीठ के 21 दिसंबर के फैसले को चुनौती दी थी। इस फैसले में रथ यात्रा निकालने की इजाजत देने वाली एकल पीठ के फैसले को पलट दिया गया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने भाजपा प्रदेश इकाई को उसकी “लोकतंत्र बचाओ” रैली के लिए एक संशोधित योजना भी जमा करने का निर्देश दिया जिस पर राज्य सरकार विचार कर सके। पीठ ने मामले में अगली सुनवाई 15 जनवरी को तय की है।
भाजपा की प्रदेश इकाई ने रैली निकालने की इजाजत के लिए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है। आगामी आम चुनावों से पहले भाजपा राज्य के 42 संसदीय क्षेत्रों से यह यात्रा निकालना चाहती है। अपनी याचिका में भाजपा ने कहा कि शांतिपूर्ण यात्रा के आयोजन के उनके मौलिक अधिकार की अवहेलना नहीं की जा सकती। पार्टी ने राज्य के तीन जिलों से यह यात्रा शुरू करने की योजना बनाई थी। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मामले पर नये सिरे से सुनवाई करने के लिए एकल पीठ को भेज दिया था और राज्य एजेंसियों की खुफिया सूचनाओं पर भी विचार करने को कहा था।
एकल न्यायाधीश वाली पीठ के आदेश के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर खंडपीठ ने आदेश दिया था। मूल कार्यक्रम के मुताबिक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सात दिसंबर को बंगाल के कूच बिहार जिले से, नौ दिसंबर को 24 दक्षिण परगना के काकद्वीप से और 14 दिसंबर को बीरभूम के तारापीठ मंदिर से इन रैलियों को हरी झंडी देने वाले थे। शीर्ष अदालत में दायर याचिका में भाजपा प्रदेश इकाई ने दलील दी कि अधिकारियों उनके अधिकारियों को कम नहीं कर सकते और यह उनका कर्तव्य है कि वे लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने में उनकी मदद करे।
राज्य सरकार बार-बार नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर “हमला” कर रही है और विभिन्न संगठनों को अनुमति देने से इनकार कर रही है। इसके चलते राज्य सरकार की गतिविधियों को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इसमें दावा किया गया कि पहले भी “भाजपा को परेशान करने के लिए” कई बार आखिरी वक्त में इजाजत नहीं दी गई और इसी वजह से उसने बाद में उच्च न्यायालय का रुख किया। साथ ही इसमें कहा गया कि पार्टी “पश्चिम बंगाल में 2014 से ही ऐसे राजनीतिक प्रतिशोध का सामना कर रही है।