सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत दायर मुकदमों की सुनवाई की निगरानी के लिए सभी उच्च न्यायालयों को तीन-सदस्यीय समिति गठित करने का आज निर्देश दिया। न्यायालय ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को पॉक्सो मामलों की जांच के लिए विशेष कार्य बल (एसटीएफ) गठित करने का भी निर्देश जारी किया।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अलख आलोक श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये दिशानिर्देश जारी किए। पीठ ने कहा, ‘उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि पॉक्सो कानून के तहत पंजीकृत मामलों की सुनवाई विशेष अदालत करे तथा मामले का निपटारा संबंधित कानून के प्रावधानों के तहत किया जाए।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय यह प्रयास करेगा कि पॉक्सो कानून की भावनाओं के तहत बच्चों के अनुकूल अदालतें गठित हों। पीठ ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही विशेष अदालतें बेवजह सुनवाई स्थगित नहीं करेंगी तथा 2012 के पॉक्सो कानून के तहत मामले का त्वरित निपटारा करेंगी।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) पिंकी आनंद ने पीठ को अवगत कराया कि 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार मामलों में फांसी की सजा के प्रावधान को लेकर अध्यादेश लाया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने सुश्री आनंद से पूछा, ‘क्या इस अध्यादेश में मुकदमे के निपटारे के लिए भी कोई समय सीमा तय की गई है?’
इस पर एएसजी ने कहा कि अध्यादेश में सजा के बारे में ही संशोधन किया गया है, जबकि सुनवाई पूरी करने के संबंध में दंड विधान संहिता (सीआरपीसी) में पहले से प्रावधान किए गए हैं। अपील के लिए यह अवधि छह माह है और जांच पूरी करने के लिए यह समय सीमा दो माह है।’
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