दिग्गज अधिवक्ता, कानूनविद और राजनीतिज्ञ थे राम जेठमलानी - Punjab Kesari
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दिग्गज अधिवक्ता, कानूनविद और राजनीतिज्ञ थे राम जेठमलानी

ठमलानी वाजपेयी सरकार में कानून तथा शहरी मामलों के मंत्री भी रहे। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई शिकारपुर के स्थानीय

वरिष्ठ बीजेपी नेता राम जेठमलानी अपने समय के दिग्गज अधिवक्ता तथा कानूनविद रहे तथा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बने। अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के शिकारपुर (अब पाकिस्तान) में 14 सितंबर 1923 को  बूलचंद जेठमलानी और पार्वती बूलचंद के घर जन्मे जेठमलानी दो बार लोकसभा और पांच बार राज्यसभा के लिए चुने गए तथा एक बार राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। 
जेठमलानी वाजपेयी सरकार में कानून तथा शहरी मामलों के मंत्री भी रहे। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई शिकारपुर के स्थानीय विद्यालय में ही हुई। वह पढ़ने में शुरू से ही काफी तेज थे। उन्होंने 13 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी और 17 वर्ष में ही कराची के एस.सी. साहनी लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त कर ली थी। 

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उस समय वकालत की प्रैक्टिस के लिए न्यूनतम उम, 21 वर्ष थी, लेकिन जेठमलानी के लिए एक विशेष प्रस्ताव पास करके 18 साल की उम, में प्रैक्टिस करने की इजाजत दे दी गयी। इसके बाद उन्होंने एस.सी साहनी लॉ कॉलेज से ही एल.एल.एम. की डिग्री भी प्राप्त कर ली। 
जेठमलानी का विवाह 18 वर्ष की उम्र में श्रीमती दुर्गा से कर दिया गया। वर्ष 1947 में देश के विभाजन से कुछ समय पहले उन्होंने रत्ना आर. से भी विवाह कर लिया। इन दोनों पत्नियों से उनके दो बेटियाँ रानी और शोभा तथा दो बेटे महेश और जनक हैं। जेठमलानी ने अपने करियर की शुरुआत सिंध में एक प्रोफेसर के तौर पर की। इसके पश्चात उन्होंने अपने मित्र ए.के. ब्रोही के साथ मिलकर कराची में एक लॉ फर्म की स्थापना की। 
विभाजन के बाद 1948 में जब कराची में दंगे भड़के तब ब्रोही ने ही उन्हें पाकिस्तान छोड़ भारत जाने की सलाह दी। उन्होंने 1953 में मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में अध्यापन कार्य प्रारंभ कर दिया। यहाँ वह स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों को पढ़ते थे। उन्होंने अमेरिका के डेट्रॉइट में स्थित वायने स्टेट यूनिवर्सिटी में कम्पेरेटिव लॉ और इंटरनेशनल लॉ भी पढ़या। वह एक प्रसिद्ध अधिवक्ता और राजनीतिज्ञ थे। 
वह 1968 में बार काउंसिल ऑ़फ इंडिया के उपाध्यक्ष और 1970 में इसके अध्यक्ष बने। वह कुल चार बार बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष चुने गए और देहावसान तक भी वे इस पद पर थे। आपातकाल के समय वह बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष थे। 
उन्होंने आपातकाल की जमकर आलोचना की और गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्हें कनाडा भी भागना पड़ा। आपातकाल हटने के बाद वर्ष 1977 में मुंबई उत्तर-पश्चिम सीट से वह पहली बार छठी लोकसभा के लिए चुने गए और 1980 में भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए।

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