पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द कर दिया है, जो भारत द्वारा सिंधु जल संधि रोकने और अन्य कड़े फैसलों के बाद हुआ। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।
पहलगाम में हुए 22 अप्रैल को हमले ने पूरे देश में कोहराम मचा दिया है। पूरे देश में इस घटना को लेकर लोगों में बदले की भावना है। इस निर्मम हत्या के बाद भारत की मोदी सरकार ने कई बड़े फैसले लिए। जिसमें पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि रोकने, अटारी बॉर्डर को बंद करने और पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को भारत छोड़ने के निर्देश दिए हैं। भारत द्वारा लिए गए इन कड़े फैसलों के बाद पाकिस्तान ने गुरुवार को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक की, जिसमें पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि रोकने के भारत के फैसले को युद्ध की कार्रवाई बताया।
पाकिस्तान ने किया उल्लंघन
पाकिस्तान ने भारत की तरफ से लिए गए फैसले के बाद शिमला समझौते सहित द्विपक्षीय समझौते स्थगति करने की बात कही है। पहलगाम हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल है। इस दौरान सबसे चर्चित मामला शिमला समझौता बना हुआ है। तो ऐसे में चलिए जानते हैं क्या है यह डील।
क्या है शिमला समझौता?
1971 में भारत-पाक युद्ध के बाद उनके 90 हज़ार से ज़्यादा सैनिक युद्धबंदी बना लिए गए थे। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने और पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा करने की कोशिशें शुरू हुईं। फिर दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्तों के लिए 2 जुलाई 1972 को शिमला में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
डील की अहम बातें
दोनों देशों ने 17 सितंबर 1971 को युद्ध विराम को मान्यता दी। यह तय हुआ कि इस समझौते के 20 दिनों के भीतर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमाओं पर वापस चली जाएंगी।
डील में यह भी तय हुआ था कि दोनों देशों के सरकार भविष्य में मिलते रहेंगे। आपसी संबंध अच्छा बनाने के लिए दोनों देशों के अधिकारी समय-समय पर बात करते रहेंगे।
डील में यह भी तय हुआ था कि दोनों देश सभी विवादों और परेशानियों के शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए सीधी बातचीत करेंगे। इस दौरान कोई तीसरा पक्ष की तरफ से कोई मध्यस्थता नहीं की जाएगी।
यातायात के लिए सुविधाएं स्थापित की जाएंगी। ताकि दोनों देशों के लोग बीना किसी परेशानी के आ जा सकेंगे।
दोनों देशों के बीच जहां तक संभव होगा व्यापार और आर्थिक मदद फिर से स्थापित किये जाएंगे।
यदि दोनों देशों के बीच किसी समस्या का अंतिम समाधान नहीं हो पाता है और मामला लंबित रहता है, तो कोई भी पक्ष स्थिति को बदलने का कोई एकतरफा प्रयास नहीं करेगा।
दोनों पक्ष ऐसे कार्यों में सहायता, प्रोत्साहन या सहयोग नहीं करेंगे जो शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंधों के रखरखाव के लिए हानिकारक हों।
दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेंगे। समानता और पारस्परिक लाभ के आधार पर वे एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
दोनों सरकारें अपने-अपने अधिकारों के भीतर किसी भी देश को निशाना बनाने वाले हिंसक प्रचार को रोकने के लिए सभी उपाय करेंगी। दोनों देश ऐसी सूचनाओं को साझा करने को प्रोत्साहित करेंगे।
संचार के लिए डाक, टेलीग्राफ सेवाएं, समुद्री, सीमा चौकियों सहित सतही संचार साधन, उड़ानें सहित हवाई संपर्क बहाल किए जाएंगे।
दोनों पक्षों के प्रतिनिधि शांति स्थापित करने, युद्धबंदियों और शहरी बंदियों की अदला-बदली, जम्मू-कश्मीर के अंतिम समाधान और राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने की संभावनाओं पर मिलकर काम करने और चर्चा करने के लिए आगे भी मिलते रहेंगे।
दोनों देशों ने आर्थिक और अन्य सहमत क्षेत्रों में व्यापार और सहयोग को यथासंभव बढ़ाने पर सहमति जताई। विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्रों में आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर भी सहमति बनी।
पाकिस्तान ने कब-कब इस समझौते का उल्लंघन किया?
1972 के शिमला समझौते में दोनों देश बातचीत के माध्यम से समस्याओं को हल करने पर सहमत हुए थे, लेकिन पाकिस्तान ने 1999 में शिमला समझौते का उल्लंघन किया जब पाकिस्तानी सैनिकों ने जम्मू और कश्मीर में भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया। इसके बाद भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए अभियान चलाया, इसे कारगिल युद्ध के नाम से जाना जाता है।
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