Jharkhand का रोहिणी गांव, जहां के तीन सिपाहियों के विद्रोह से कांप उठी थी अंग्रेजी हुकूमत
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Jharkhand का रोहिणी गांव, जहां के तीन सिपाहियों के विद्रोह से कांप उठी थी अंग्रेजी हुकूमत

Jharkhand

Independence Day: सन 57 की क्रांति में संघर्ष, वीरता और शहादत की ऐसी कई दास्तानें हैं, जो तारीख के पन्नों का अमिट हिस्सा होकर भी जन-जन तक नहीं पहुंच पाईं। ऐसी ही एक दास्तान है झारखंड(Jharkhand) के देवघर जिले में रोहिणी गांव के तीन नायकों अमानत अली, सलामत अली और शेख हारून की, जिनके विद्रोह से अंग्रेजी हुकूमत कांप उठी थी।

1857 में मेरठ में भड़का विद्रोह

इतिहास की किताबें बताती हैं कि अजय नदी के किनारे स्थित रोहिणी गांव(Jharkhand) में मेजर मैकडोनाल्ड के कमान में ईस्ट इंडिया कंपनी की थल सेना की 32वीं रेजिमेंट तैनात थी। 1857 में मेरठ में भड़के सिपाही विद्रोह और अंग्रेजों के जुल्म की खबरें दीवान अजीमुल्लाह खां के मुखबिरों के जरिए रोहिणी की सैनिक छावनी तक पहुंची थी। इसी रेजिमेंट में बतौर घुड़सवार सिपाही तैनात रहे अमानत अली, सलामत अली और शेख हारून को अंग्रेजों के जुल्म की खबर मिली तो उनका खून खौल उठा।

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12 जून 1857 की तारीख मैकडोनाल्ड एवं उनके दो साथी पर हमला

वह 12 जून 1857 की तारीख थी, जब मेजर मैकडोनाल्ड एवं उनके दो साथी अफसर नार्मन लेस्ली तथा डॉ. ग्रांट घर पर शाम की चाय पी रहे थे। अमानत अली, सलामत अली और शेख हारून ने उसी वक्त उन पर हमला कर दिया। लेफ्टिनेंट नॉर्मन लेस्ली मौके पर मारा गया, जबकि डॉ. ग्रांट और एक अन्य अफसर घायल होने के बाद जान बचाकर किसी तरह भागे।

Massacre and Brutal Retaliation: The Siege of Cawnpore

 

फिर क्या था, यह विद्रोह पहले पूरी छावनी और इसके बाद तत्कालीन बिहार के अलग-अलग हिस्सों में फैल गया। रोहिणी छावनी के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने भागलपुर से बड़ी तादाद में घुड़सवार फौज बुलाई। इस गांव में अंग्रेजों ने काफी जुल्म ढाए और मासूम बच्चों तक को मार डाला। दो दिन बाद ही अमानत अली, सलामत अली और शेख हारून भी लड़ते हुए पकड़े गए। रोहिणी में ही इन तीनों सैनिकों का कोर्ट मार्शल हुआ और बगैर किसी न्यायिक प्रक्रिया के 16 जून 1857 को आम के पेड़ से लटकाकर तीनों को फांसी दे दी गई।
रोहिणी गांव से शुरू हुई क्रांति की लहर पूरे बिहार (जिसमें आज का झारखंड भी शामिल था) में फैल गई। अंग्रेजों को रोहिणी से अपना रेजिमेंट हटाकर भागलपुर ले जाना पड़ा।

मीरजाफ़र की गद्दारी

इतिहासकार बैकुंठ नाथ झा ने अपनी पुस्तक ‘मातृ-बंधन मुक्ति-संग्राम में संथाल परगना’ में इस क्रांति का जिक्र करते हुए लिखा है, महामृत्यु के पूर्व इन देशभक्त क्रांतिवीरों ने नमाज अदा की, धरती पर माथा टेका और सिंहनाद करते हुए कहा, आज ही के दिन, उस काले 16 जून, 1757 को सत्तालोलुप मीरजाफ़र ने पाक क़ुरान शरीफ़ पर हाथ रख कर झूठी कसम खाई थी और वतनपरस्त नवाब सिराजुद्दौला के साथ गद्दारी की थी, उस कलंक को आज हम अपने लहू से धो रहे हैं।

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‘गोरीडीह’ क्या है

बैकुंठ नाथ झा अपनी किताब में आगे लिखते हैं, इस विद्रोह को दबाने के क्रम में छह मास तक अंग्रेजी सेना रोहिणी में ठहरी रही और उनका सारा राशन बंदूक की नोंक पर रोहिणी के किसानों और व्यापारियों को देना पड़ा। जिस मैदान में गोरी फौज ठहरी थी, उस स्थान पर बसा मोहल्ला आज ‘गोरीडीह’ के नाम से जाना जाता है।

‘फंसियाबारी’-1857 के तीनों विद्रोहियों को हुई थी फांसी

देवघर स्थित एएस कॉलेज के इतिहास के प्राध्यापक डॉ. जय नारायण राय ने कहा, ”रोहिणी विद्रोह ने निश्चित रूप से अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दी थीं। लेकिन, इसकी तारीखों को लेकर भ्रम है। कई शोधकर्ताओं का कहना है कि यह विद्रोह बैरकपुर छावनी में 1857 के पहले हुआ था। अंग्रेजों ने जिस जगह तीनों विद्रोहियों को फांसी दी थी, वह जगह आज ‘फंसियाबारी’ के नाम से जानी जाती है। ये तीनों शहीद रोहिणी के आसपास के गांवों के रहने वाले थे।”

Rohini village of Jharkhand, where the British rule was shaken by the  rebellion of three soldiers-m.khaskhabar.com
बहरहाल, अब इस जगह पर एक स्मारक है, जहां तीनों शहीदों की प्रतिमाएं हैं। डॉ. जय नारायण राय कहते हैं कि यहां स्मारक तो स्थापित हो गया है, लेकिन इसके बेहतर रखरखाव और उन्नयन की जरूरत है।

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