वाक्पटुता के धनी जयपाल रेड्डी ने मूल्यों से कभी नहीं किया समझौता - Punjab Kesari
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वाक्पटुता के धनी जयपाल रेड्डी ने मूल्यों से कभी नहीं किया समझौता

रेड्डी 1999 में फिर से कांग्रेस में शामिल हुए और 2004 में मिर्यलागुदा तथा 2009 में चेवेल्ला क्षेत्र

अपनी वाक्पटुता और स्पष्टवादिता के लिए पहचाने जाने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी ने अपने राजनीतिक जीवन में कभी मूल्यों से समझौता नहीं किया और यहां तक कि वह आपातकाल लागू करने पर अपनी तत्कालीन राजनीतिक बॉस इंदिरा गांधी का भी विरोध करने से नहीं हिचकिचाए थे। 
पूर्व केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री का रविवार तड़के यहां एक अस्पताल में देहांत हो गया। पोलियो के कारण रेड्डी की शारीरिक अक्षमता कभी उन्हें राजनीति की ऊंचाइयों पर पहुंचने से नहीं रोक पाई और वह लोकसभा में पांच बार सांसद, राज्यसभा के दो बार सदस्य और चार बार विधायक रहे। 

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आपातकाल लगने के बाद कांग्रेस छोड़ने के बाद वह जनता पार्टी में शामिल हो गए और 1980 में उन्होंने मेदक लोकसभा क्षेत्र से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। बाद में वह इससे अलग हुई पार्टी जनता दल में शामिल हुए। अद्वितीय वाक्पटुता और भाषण कौशल से उन्होंने ना केवल वाह वाही लूटी बल्कि इस हुनर ने उन्हें यूनाइटेड फ्रंट और नेशनल फ्रंट सरकारों तथा कांग्रेस पार्टी का प्रवक्ता भी बनाया। 
रेड्डी तेलंगाना के लिए अलग राज्य के दर्जे की मांग के कट्टर समर्थक थे। कांग्रेस नेताओं ने याद किया कि उन्होंने संप्रग-2 सरकार और तत्कालीन एआईसीसी अध्यक्ष सोनिया गांधी को तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने के लिए मनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तेलुगु के एक समाचार चैनल को साक्षात्कार में जयपाल रेड्डी ने कहा था कि उन्हें अलग तेलंगाना की मांग को लेकर आंदोलन के दौरान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की पेशकश की गई थी लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया था। 
रेड्डी तेलंगाना कांग्रेस के नेताओं का मार्गदर्शन करते रहे जो 2010 में अलग तेलंगाना की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। तेलंगाना में महबूबनगर जिले के मदगुल में 16 जनवरी 1942 को जन्मे रेड्डी ने अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक की डिग्री ली और वह 1960 के दशक की शुरुआत से ही छात्र नेता थे। 
कई दशकों तक सांसद रहते हुए उन्होंने विभिन्न सरकारों में अहम पद संभाले। उन्हें 1998 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरूस्कार दिया गया था। वह 1969 से 1984 तक आंध्र प्रदेश (अविभाजित) विधानसभा के सदस्य रहे। रेड्डी पहली बार 1984 में लोकसभा में चुने गए और वह दो कार्यकालों 1990-96 और 1997-98 में राज्यसभा के सदस्य रहे। वह ऊपरी सदन में 1991-1992 में विपक्ष के नेता बने। 
रेड्डी 1999 में फिर से कांग्रेस में शामिल हुए और 2004 में मिर्यलागुदा तथा 2009 में चेवेल्ला क्षेत्र से लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए। जयपाल रेड्डी 2014 में महबूबनगर से लोकसभा चुनाव हार गए और उन्होंने 2019 में आम चुनाव नहीं लड़ा। वह आई के गुजराल सरकार में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे तथा मनमोहन सिंह सरकार में उन्हें कई विभाग दिए गए। 
संप्रग-2 में उन्हें शहरी विकास मंत्रालय सौंपा गया। बाद में वह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री बने लेकिन फिर उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सौंपे गए जिससे राजनीतिक विवाद पैदा हो गया। ऐसी अटकलें लगाई गई कि जयपाल रेड्डी को पेट्रोलियम मंत्रालय से इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्होंने कुछ तेल एवं गैस कंपनियों को उत्पादन के मुद्दों पर नोटिस जारी किए थे। 
उन्होंने कुछ किताबें भी लिखीं। उनके भाई सुदिनी पद्म रेड्डी ने बताया कि उन्होंने कभी परिवार के सदस्यों को राजनीति में आने के लिए प्रेरित नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘‘वह काफी अनुशासित और प्रतिबद्ध व्यक्ति थे। उन्होंने परिवार के सदस्यों को कभी राजनीति में आने के लिए प्रेरित नहीं किया और हम सभी (भाइयों और बेटों) को राजनीति से दूर रखा। हमारी भूमिकाएं बस चुनावों के दौरान प्रचार करने तक सीमित थी लेकिन हम कभी सक्रिय राजनीति में नहीं आए।’’ 
जयपाल रेड्डी ने दोस्तों के साथ अनौपचारिक बातचीत में एक बार कहा था कि वह और पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी कांग्रेस के दो प्रतिष्ठित नेता हैं जिन्होंने कभी अपने बच्चों को राजनीति में आने के लिए प्रेरित नहीं किया। रेड्डी के एक रिश्तेदार विजयेंद्र रेड्डी ने बताया कि दिवंगत नेता के बेटे विभिन्न कारोबार में शामिल हैं। 

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