दिल्ली के छतरपुर के पास स्थित असोला और फतेहपुर बेरी गांव आज “भारत का सबसे ताक़तवर गांव” कहलाता है। यहां के युवाओं की पहचान अब पहलवानी से आगे बढ़कर बाउंसर बनने तक पहुंच चुकी है। गांव के पहलवान विजय तंवर ने जब ओलंपिक में जगह नहीं बना पाए, तो उन्होंने बाउंसर बनने का फैसला किया। उनकी सफलता ने गांव के युवाओं को एक नया रास्ता दिखाया। अब यहां बाउंसर बनना न सिर्फ एक पेशा, बल्कि सम्मान की बात मानी जाती है।
हर घर से निकल रहे हैं बॉडीगार्ड और बाउंसर
इन जुड़वां गांवों में सैकड़ों युवक अब देशभर के क्लबों, इवेंट्स और वीआईपी सुरक्षा में बाउंसर के रूप में काम कर रहे हैं। फिटनेस और अनुशासन यहां की दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं। बच्चों को कम उम्र से ही कुश्ती और जिम की ट्रेनिंग दी जाती है।
बदलती पहचान, बढ़ता सम्मान
जहां बाकी गांव खेती या मजदूरी से जुड़े हैं, वहीं असोला-फतेहपुर बेरी ने ताक़त को ही अपना पेशा बना लिया है। यह गांव अब युवा शक्ति, फिटनेस और सुरक्षा का प्रतीक बन चुका है।