भारत जिसकी आबादी 1 अरब चालीस करोड़ हैं दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश विविधिता में एकता का एक नायाब उदाहरण पेश करता हैं, भारत की आबादी में 4635 से अधिक समुदाय जिसमें 78% न केवल भाषाई विविधिता हैं बल्कि कई सामाजिक श्रेणियाँ हैं। आबादी का 20 % हिस्सा धार्मिक अल्पसंख्यकों का है भारत इन सबकों अपने में समेटता हैं । भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया, यहीं से 26 जनवरी को गणतंत्र के रूप में मान्यता मिली और यही से सुरू होती हैं आधुनिक भारत के लोकतंत्र की महान गाथा। लोकतंत्र की सबसे बड़ी शर्त हैं निष्पक्ष चुनाव और चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से सत्ता का संचालन। भारत में आजादी के बाद से ही यह भावना प्रबल रही और फिर 26 जनवरी से देश ने जब संस्थागत रूप लिया तब जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए प्रतिनिधियों बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाने सहमति हुई और फिर इसी लीक पर 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच लोकसभा के प्रथम आम चुनाव हुए। मुद्दतों की गुलामी के दंश को झेलते इस नए नवेले देश में जहां विकट गरीबी, विभाजन की त्रासदी, वैश्विक चुनौतियाँ मुहँ बाये सामने हों वहाँ लोकतंत्र चुनाव का पहला प्रयोग सफल रहा। आजादी के आंदोलन के दौरान ही यह विचार मजबूत हो रहा था की अंग्रेजों के जाने के बाद भारत में तानाशाही या राजशाही की वापसी नही होगी।
समय के साथ इसने ठोस रूप ले लिया बात आगे बड़ चुकी थी नया भारत और मजबूत भारत लोकतान्त्रिक भारत आजादी के दीवानों का लक्ष्य बन चुका था फिर हमारे लोकतंत्र ने कभी मुड़कर पीछे नही देखा और आज हम गर्व से 76 वां गणतंत्र मना रहें हैं। हालाकि एक समय एसा भी आया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर चुनावों को टालने की कोशिश की, लेकिन इसी बहाने दुनिया को ये मालूम हो गया की भारतीय लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं, कि इंदिरा जी को 21 महीने बाद ही चुनाव करवाने पड़ा था जिसमें कांग्रेस की हार हुई थी, मतलब सारी परेशानियों के बाद भी देश की जनता का जोर प्रजातन्त्र पर ही रहा भारतीय लोकतंत्र की ये सबसे बड़ी ताकत हैं और उपलब्धि भी । हमारे देश में राष्ट्रपति से लेकर ग्राम पंचायत तक के चुनाव, चुनाव आयोग द्वारा निष्पक्ष करवाया जाता हैं, यही बजह है की सार्वजनिक जीवन में आने वाला हर नागरिक आगे बड़ता हैं । भारत के लोकतंत्र की ताकत हैं की जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि आम शहरी की नजरों में ऊंचा स्थान रखता हैं ।
भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहरी इस लिए भी हुई स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल सभी नाम लोकतान्त्रिक विचारों के हामी थी । भले ही विचारधारा कोई भी रही हैं हों । चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र का एक अहम स्तम्भ हैं जिसकी स्वतंत्र रूप से चुनाव करवाने की जिम्मेदारी हैं राजनीतिक दलों को आचार सहींता का पालन करवाने के साथ साथ चुनावी खर्चों और कदाचार पर भी नियंत्रण रखता हैं । 26 जनवरी 1950 को स्थापित चुनाव आयोग लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधानपरिषद, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का चुनाव कराता हैं, तो वहीं भारत में वयस्क मताधिकार की व्यवस्था हैं जिसमें 18 वर्ष की उम्र पार कर चुके सभी नागरिक अपने मत का अधिकार का प्रयोग करते हैं। भारत दुनिया का सबसे युवा देश हैं साल 1989 में यह तय किया गया की मतदान की आयु को 21वर्ष से घटाकर18 वर्ष कर दिया जाए ताकि युवाओं को लोकतंत्र में अधिक भागीदारी दी जा सकें और नीति निर्माण में अधिक योगदान हों। आजादी के बाद भारतीय लोकतंत्र के सामने जातियों में बटा समाज एक बड़ी चुनौती रहा असमानता की बड़ी खाई तस्वीर को और धुंधला कर रही थी सत्ता और राजनीति की मुख्यधारा में भी वंचितों के लिए कोई जगह नहीं थी ये हमारे लोकतंत्र के लिए गहरा धब्बा था जिसे खत्म करने के लिए दो चरणों में काम किया गया ।
दलितों और आदिवासियों के लिए संविधान निर्माण के समय 15% और 7.5% आरक्षण की व्यवस्था की गईं और इन्हें अनुसूचित जाति(एससी) अनुसूचितजन जाति (एसटी) के नाम से वर्गीकरत किया गया । लेकिन इससे ही मुख्यधारा में लाना संभव नही था भारत की कुल्य आबादी के लगभग 41 % कुछ अन्य पिछड़ी जातियाँ थी जो जाति विभाजन के खिलाफ लड़ रहीं थी । सरकार लगातार इस मुद्दे पर विचार कर रही थी।1953 में काका कालेकर आयोग का गठन किया जिसके बाद दूसरा आयोग 1979 में मण्डल आयोग का गठन हुआ दोनों आयोगों को लेकर एक लंबी बहसें चली और फिर 1990 में वीपी सिंह सरकार ने मण्डल आयोग की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण लागू कर दिया। मण्डल आयोग के बाद देश की राजनीति ने फिर करवट ली और परिवर्तन का दौर चल रहा था । ये सामाजिक परिवर्तन यही नही रुका 2005 में मनमोहन सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए एस .आर. सिन्हा की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया और रिपोर्ट में 10% आरक्षण सामान्य वर्ग के लिए सिफारिश की जिसे मोदी सरकार ने 2019 में लागू कर दिया। हमारे देश की राजनीति में इसे तमाम बदलाव आए जब व्यापक नीति बनाते समय राजनेताओं ने निजि जातिगत और संकीर्णता को नकार कर राष्ट्रहित सर्वोपरि माना।