हिन्दी कविता का शृंगार आंतरिक सौन्दर्य से ही संभव - Punjab Kesari
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हिन्दी कविता का शृंगार आंतरिक सौन्दर्य से ही संभव

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पटना : हिंदी कविता का शृंगार पाश्चात्य विचारों और आयातीत शब्दों से नहीं, बल्कि उसके आंतरिक सौंदर्य के विकास से ही किया जा सकता है। आज की कविताएं अपनी जड़ों से दूर होकर अपरिपक्व कवियों के मानसिक विलास का उपकरण बन रही है, जो साहित्य और समाज के लिए घातक है। यही कारण है कि आज की कविताएं अखबारों की शोभा तो अवश्य बन रही हैं किंतु पाठकों के हृदय में स्थान नही बना पा रही।

यह बातें आज बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में भारतीय भाषा साहित्य समागम की साहित्यिक समाचारों की त्रैमासिक पत्रिका नया भाषा भारती संवाद के नए अंक के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा. अनिल सुलभ ने कही। पत्रिका का लोकार्पण करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार जियालाल आर्य ने कहा कि, वर्षों से अबाधित प्रकाशित हो रही यह पत्रिका पाठकों से सीधा संवाद करती है।

यह बिहार में हीं नहीं संपूर्ण भारत वर्ष में लोकप्रिय हुई है। इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि नया भाषा भारती संवाद विगत 18 वर्षों से नियमित प्रकाशित हो रही और संपूर्ण भारत वर्ष में प्रसारित होने वाली हिंदी की एक मात्र पत्रिका है।

पत्रिका के संपादक और सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि इस पत्रिका का आरंभ इस संकल्प के साथ हुआ कि, देश भर में हिंदी न केवल सबकी ज़ुबान पर चढ़े बल्कि भारत के राज काज की भाषा अर्थात राज भाषा भी बने। जब तक हिंदी देश की राजभाषा का अधिकार नही पा लेती, यह संघर्ष जारी रहेगा।

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा. मधु वर्मा, डा. कल्याणी कुसुम सिंह, साहित्य मंत्री डा. शिववंश पाण्डेय, डा. मेहता नगेंद्र सिंह, कृष्ण कांत शर्मा, बच्चा ठाकुर, ओम् प्रकाश पाण्डेय श्प्रकाशश्, डा. उपेन्द्र राय, श्रीराम तिवारी, डा .पुष्पा जमुआर, डा शालिनी पाण्डेय, डा. नागेश्वर प्रसाद यादव, डा. आर प्रवेश, डा. विनय कुमार विष्णुपुरी, डा. मनोज गोवद्र्धनपुरी, राज कुमार प्रेमी, पं. गणेश झा, लता प्रासर, नंदिनी प्रनय, संजय कुमार श्रीवास्तव, डा. वीणा राय, कृष्ण रंजन सिंह तथा राज भवन सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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