पाकिस्तान में निर्वासन का जीवन जी रहे एमक्यूएम के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने पीएम मोदी से मुहाजिर समुदाय की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की है। उन्होंने मुहाजिरों की पीड़ा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने और उनकी आवाज़ बनने का आग्रह किया।
India-Pakistan tension: भारत और पाकिस्तान तनाव के बीच पाकिस्तान में निर्वासन का जीवन जी रहे मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक विशेष आग्रह किया है. उन्होंने पीएम मोदी से मुहाजिर समुदाय की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की है. मुहाजिर वे उर्दू भाषी मुस्लिम हैं, जो 1947 के विभाजन के बाद भारत से पाकिस्तान के कराची समेत अन्य शहरों में जाकर बसे थे.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एक समय था जब मुहाजिर समुदाय पाकिस्तान की राजनीति, नौकरशाही और व्यापार में प्रभावशाली भूमिका निभाता था. लेकिन पिछले कुछ दशकों में उनकी स्थिति लगातार गिरती गई है. अब ये समुदाय भेदभाव और दमन का शिकार बनता जा रहा है. अल्ताफ हुसैन ने दावा किया कि पाकिस्तानी सेना की कार्रवाइयों में 25,000 से अधिक मुहाजिरों की जान जा चुकी है, जबकि हजारों लोग लापता हैं.
पीएम मोदी से की ये मांग
लंदन में एक कार्यक्रम के दौरान अल्ताफ हुसैन ने कहा कि जैसे पीएम मोदी ने बलोचों के अधिकारों का समर्थन किया है, वैसे ही उन्हें मुहाजिर समुदाय के लिए भी आगे आना चाहिए. उन्होंने पीएम मोदी से गुजारिश की कि मुहाजिरों की पीड़ा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करें और उनकी आवाज़ बनें.
यह पहला मौका नहीं है जब अल्ताफ हुसैन ने भारत से संपर्क साधा हो. नवंबर 2019 में उन्होंने पीएम मोदी से राजनीतिक शरण की अपील की थी. उनका कहना था कि वे भारत में अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाना चाहते हैं, जो विभाजन से पहले यहीं दफनाए गए थे. इस बीच ब्रिटेन की पुलिस ने उन पर घृणा फैलाने और उकसावे वाले भाषण देने के आरोप भी लगाए थे.
ऐसे हुई राजनीतिक सफर की शुरुआत
1953 में कराची में जन्मे अल्ताफ हुसैन का परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश, भारत का था, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान गया था. कराची विश्वविद्यालय से फार्मेसी की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें यह एहसास हुआ कि मुहाजिरों का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव घट रहा है. यही चिंता बाद में उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत का कारण बनी.
1984 में एमक्यूएम की स्थापना
मुहाजिर समुदाय की आवाज़ बनने के लिए 1984 में अल्ताफ हुसैन ने मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) की स्थापना की. पार्टी को कराची और सिंध के शहरी इलाकों में व्यापक समर्थन मिला. कुछ ही वर्षों में MQM पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई और कराची की राजनीति पर इसका वर्चस्व बन गया.
आतंक और हिंसा के आरोपों में घिरे अल्ताफ
MQM के बढ़ते प्रभाव के साथ ही कराची में हिंसा और अपराध की घटनाएं भी बढ़ीं. 1980 और 1990 के दशक में विरोधियों की ‘बोरी बंद लाशें’ मिलने की घटनाएं आम हो गईं. इसी दौरान अल्ताफ हुसैन पर हत्या और हिंसा के कई मामलों में मुकदमे दर्ज किए गए, जिससे उनका विवादास्पद चेहरा सामने आया.
वहीं राजनीतिक हालात बिगड़ने के बाद 1992 में अल्ताफ हुसैन को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा. लंदन पहुंचने से पहले उनके ऊपर कई जानलेवा हमले हुए, जिनमें उनके भाई और भतीजे की मौत हो गई. ब्रिटेन ने उन्हें शरण दी और बाद में उन्हें ब्रिटिश नागरिकता भी मिल गई.
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लंदन से कराची तक कायम रहा प्रभाव
लंदन में रहने के बावजूद अल्ताफ हुसैन का कराची पर प्रभाव बरकरार रहा. वे टेलीफोन के माध्यम से अपने समर्थकों को संबोधित करते थे. लेकिन 2014 के बाद से उनका प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा. 2015 में भारत को लेकर दिया गया बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत को मुहाजिरों की हालत पर शर्म आनी चाहिए, उनका ये बयान काफी विवादास्पद रहा था.