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Maharashtra चुनाव से पहले सरकार का फैसला, मराठी समेत 5 भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा

Delhi: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को पांच और भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा की सूची में शामिल कर लिया है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने बड़ा फैसला किया है, मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषाओं को अब शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं वह समृद्ध भाषाएं हैं जो भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को अपने में संजोए हुए प्रत्येक समुदाय को ऐतिहासिक व सांस्कृतिक स्वरूप प्रदान करती हैं।

Highlights

  • 5 भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा
  • कांग्रेस ने इसे राजनीतिक चाल बताया
  • देवेंद्र फडण्वीस ने फैसले पर जताया आभार

शास्त्रीय भाषाएं भारत की प्राचीन विरासत

केंद्र सरकार ने कहा कि शास्त्रीय भाषाएं भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, तथा हर समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सार को पेश करती हैं। भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को ‘शास्त्रीय भाषा’ के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का फैसला लिया। जिसके तहत तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया तथा उसके बाद संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया।

पीएम मोदी ने दी बधाई

पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि हमारी सरकार भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को संजोती है और उसका जश्न मनाती है। हम क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता में भी अडिग रहे हैं।

महाराष्ट्र ने जताया आभार

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडण्वीस ने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने पर केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया। फडण्वीस ने कहा- ‘यह एक स्वर्णिम अक्षर वाला दिन है। महाराष्ट्र के 12 करोड़ लोगों की ओर से मैं इस फैसले के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद देता हूं।

कांग्रेस ने पीएम मोदी को घेरा

रमेश ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट किया, ‘प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने आखिरकार मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे दिया। आप घटनाक्रम समझिए। 5 मई, 2024 को, हमने प्रधानमंत्री को वर्ष 2014 के जुलाई महीने में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की ओर से केंद्र सरकार को सौंपी गई पठारे समिति की रिपोर्ट की याद दिलाई।’ उन्होंने कहा कि 12 मई, 2024 को संसद और संसद के बाहर रजनी पाटिल और महाराष्ट्र के अन्य नेताओं की ओर से किए गए प्रयासों के बावजूद, इस मांग पर सरकार की लंबी चुप्पी बनी रही।

 

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