रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर जताया शोक - Punjab Kesari
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर जताया शोक

राजनाथ सिंह ने उस्ताद जाकिर हुसैन को दी श्रद्धांजलि

शहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। परिवार ने उनके निधन की पुष्टि की। वहीं एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर राजनाथ सिंह ने अपने पोस्ट में हुसैन को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत की दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी है। पोस्ट में लिखा है, “शास्त्रीय संगीत की दुनिया पर अमिट छाप छोड़ने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। तबला वादन को अपनी जीवन शैली बनाने वाले जाकिर हुसैन ने अपनी कला के स्वर और धमाका से भारतीय संगीत को पूरी दुनिया में प्रतिष्ठा दिलाई।”

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राजनाथ सिंह ने दी श्रद्धांजलि

अपनी पोस्ट में आगे रक्षा मंत्री ने हुसैन के निधन को कला और संगीत की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति बताया। पोस्ट में आगे लिखा है, “उनका निधन कला और संगीत की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं।” उस्ताद जाकिर हुसैन का 15 दिसंबर को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी मृत्यु का कारण इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस, एक पुरानी फेफड़ों की बीमारी बताई गई। परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रोस्पेक्ट पीआर के जॉन ब्लेचर ने इस खबर की पुष्टि की।

दुनियाभर में मनाया गया शोक

व्यापक रूप से सभी समय के सबसे महान तालवादकों में से एक माने जाने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन न केवल अपने शिल्प के उस्ताद थे, बल्कि एक सांस्कृतिक सेतु-निर्माता भी थे, जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। पारंपरिक और समकालीन संगीत दोनों में उनके योगदान ने वैश्विक संगीत परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। 9 मार्च, 1951 को मुंबई में जन्मे जाकिर हुसैन को तबला बजाने की प्रतिभा और जुनून अपने पिता, प्रतिष्ठित उस्ताद अल्ला रक्खा से विरासत में मिला था। छोटी उम्र से ही असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाले जाकिर हुसैन ने किशोरावस्था से ही प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। उनके बेजोड़ कौशल और सहज लय ने जल्द ही उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में प्रमुखता दिला दी।

जाकिर हुसैन को मिले पुरस्कार

जाकिर हुसैन ने तबले की भूमिका को फिर से परिभाषित किया, इसे महज एक सहायक वाद्य से बदलकर प्रदर्शनों में एक केंद्रीय व्यक्ति बना दिया। लगभग छह दशकों के करियर में, जाकिर हुसैन को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले, जिनमें भारत सरकार से पद्म श्री (1988) और पद्म भूषण (2002), विश्व संगीत में उनके योगदान के लिए 4 ग्रैमी पुरस्कार, भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनकी उत्कृष्टता को मान्यता देने वाला संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, अमेरिका में पारंपरिक कलाकारों के लिए सर्वोच्च पुरस्कार नेशनल हेरिटेज फेलोशिप शामिल हैं।

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