'दास्तान-ए-हनी' - Punjab Kesari
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‘दास्तान-ए-हनी’

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फिलहाल देश की फिजाओं में कोई चर्चा है तो सिर्फ और सिर्फ हनीप्रीत की है, इसके अलावा कुछ भी नहीं. गुरमीत राम रहीम की इस मुंहबोली बेटी की हकीकत जानकर या तो लोग हैरत में हैं या उसका और गुरमीत का रिश्ता लोगों के लिए एक मजाक बन चुका है। कुल मिलाकर अखबार से वेबसाइट तक टीवी से सोशल मीडिया तक हनीप्रीत ही छाई हुई है। आज हम आपकों दास्तान-ए-हनी बताने जा रहे हैं :-

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लेकिन हम आपको बता दें कि जितना आप हनीप्रीत के बारे में जानते हैं, वो कुछ भी नहीं है। बल्कि उसकी कहानी तो कुछ और ही है। जितना रहस्य हनीप्रीत के गायब हो जाने में है, उतना ही राज उसकी तमाम जिंदगी में भी है। हनीप्रीत का नाम भी एक राज है। हनीप्रीत का माता-पिता के अलावा उसकी एक बहन और एक भाई है। 21 जुलाई 1980 को हरियाणा के फतेहाबाद में पैदा हुई। पिता बिजनेसमैन थे तो सोचा कि पढ़ा लिखा के कुछ बनाएंगे। हनीप्रीत ने पढ़ाई तो की मगर उसका इस्तेमाल कुछ बनने में नहीं बल्कि गुरमीत को बाबा बनाने में करने लगी, क्योंकि बाबा के सहारे ये बेबी पहले बॉलीवुड और फिर हॉलीवुड में छा जाने के ख्वाब दिल में पाल रही थी।

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हनीप्रीत का ये नाम और ये पहचान हमेशा से नहीं थी, यह सब तो उसके मुंहबोले पापा का दिया हुआ था। गुरमीत सिंह के करीब आने से पहले हनीप्रीत कुछ और थी। जब वह स्कूल में पढ़ती थी, तब उसका नाम प्रियंका तनेजा हुआ करता था। उस दौर में प्रियंका तनेजा के स्कूल की प्रिंसिपल भी यह जानकर हैरान हैं कि उनके साथ पढ़ने वाली शर्मीली और घरेलू लड़की ही आज की हनीप्रीत है।

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हरियाणा के फतेहाबाद का मकान हनीप्रीत के बचपन से लेकर उसकी सगाई तक की जिंदगी का गवाह है। एक अरसा पहले हनीप्रीत इसी घर में अपने परिवार के साथ रहती थी। जगजीवनपुरा की गलियों से एक आम लड़की की तरह उसका आना जाना रहता था। यही मकान और यही गलियां पहली बार हनीप्रीत की जिंदगी में गुरमीत राम रहीम की धमाकेदार एंट्री की चमक से चौंधिया गए थे।

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दरअसल हनीप्रीत उर्फ प्रियंका तनेजा का परिवार पहले से ही डेरे से जुड़ा था। हनीप्रीत के दादा डेरे में प्रशासक का काम देखते थे। फतेहाबाद के मकान से जब हनीप्रीत की सगाई हुई तो गुरमीत राम रहीम खुद इस समारोह में शामिल होने पहुंचा था। राम रहीम का रुआब और चकाचौंध तब पहली बार फतेहाबाद के लोगों ने देखा। उसके स्वागत में पूरे मोहल्ले को दुल्हन की तरह सजाया गया था।

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हनीप्रीत की सगाई भले ही फतेहाबाद से हुई थी, लेकिन शादी बाबा की सरपरस्ती में उसके सिरसा के डेरे पर ही हुई थी और हनीप्रीत की शादी के बाद अचानक उसका पूरा परिवार फतेहाबाद में अपना बसा बसाया घर छोड़कर सिरसा में बाबा राम रहीम के डेरे में चले गए।सूत्रों के मुताबिक बाबा की शरण में आने से पहले और हनीप्रीत के बाबा के करीब आने से भी पहले, उसकी मां बाबा को अपना परमेश्वर मान बैठी थी और उन्हीं कि जिद पर परिवार फतेहाबाद से सिरसा के डेरे में जा बसा था।

जिस शाही अंदाज में गुरमीत सिंह उसकी सगाई में पहुंचा था उससे पता चलता है कि हनीप्रीत को लेकर उसके दिल में खास जगह बहुत पहले से थी। वक्त बीतने के साथ यह जगह और खास होती गई। नौबत यहां तक आ गई कि अपनी खुद की दो-दो बेटियों और एक बेटे के होते हुए गुरमीत ने हनीप्रीत को गोद लेकर दुनिया के सामने उसे अपनी बेटी बनाने का ऐलान कर दिया, वह भी हनीप्रीत की शादी के पूरे 9 साल बाद।

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हनीप्रीत सिर्फ बाबा के करीब ही नहीं थी, बल्कि वह ऐसा पंचकार्ड थी जिसके बिना बाबा के डेरे का दरवाजा खुलता ही नहीं था। गुरमीत के जैसा तो नहीं मगर गुरमीत से कम भी उसका रुतबा नहीं था। अब गुरमीत की दुनिया में उसकी हनक और अरबों खरबों का साम्राज्य करीब करीब लुट चुका है। खुद हनीप्रीत एक लुटी हुई रियासत की उजड़ी हुई महारानी की तरह अज्ञातवास में कहीं भटक रही है, लेकिन 25 अगस्त से पहले तक बाबा के नाम की वह रियासत जब गुलजार थी। तब हनीप्रीत का रुतबा वहां किसी महारानी से कम नहीं था।

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हनीप्रीत न सिर्फ बाबा की सबसे करीबी थी, बल्कि वह राम रहीम और डेरा की सबसे बड़ी राजदार भी है। बाबा राम रहीम कोई भी फैसला लेने से पहले सिर्फ हनीप्रीत से ही सलाह लेता था। बाबा की इस बेबी के हाथ में डेरे की सभी चाबियां रहती थीं। पैसे से लेकर हर वो फैसला जो डेरे से संबंधित होता था, वो हनीप्रीत की करती थी। हनीप्रीत ही राम रहीम के फिल्म प्रोडक्शन का काम संभालती थी। बाबा की सारी फिल्में हनीप्रीत ने ही डायरेक्ट की थीं।

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