दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) : अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग हिल्स में चल रहे अनिश्चितकालीन बंद को कल दो माह हो जाएंगे और यह आंदोलन चला रहे दलों की एकता में अब दरार पड़ती नजर आ रही है। आंदोलन में मुख्य भूमिका रखने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के तथाकथित मनमानीपूर्ण रवैये को लेकर विभिन्न पहाड़ी दल नाराज हैं और उन्हें लगता है कि नेतृत्व के अभाव में अधिक नुकसान हुआ है। अनिश्चितकालीन बंद 15 जून से शुरू हुआ है।
भारतीय गोरखा परिसंघ (बीजीपी) के अध्यक्ष सुखमन मुक्तन ने बताया “पिछले दो माह में पहाडिय़ों पर हुई ज्यादातर हिंसा को जीजेएम के समर्थकों ने अंजाम दिया है। ऐसी घटनाएं न केवल हमारे लोकतांत्र्ािक आंदोलन को कमजोर करती हैं बल्कि हमारी जायज मांग पर भी सवाल उठाती हैं। “
बीजीपी गोरखालैंड मूवमेंट कोआर्डिनेशन कमेटी (जीएमसीसी) के 30 पहाड़ी दलों में से एक है। पृथक गोरखालैंड की मांग के लिए कार्ययोजना तैयार करने की खातिर 20 जून को जीएमसीसी का गठन किया गया था। जीजेएम की अगुवाई में जीएमसीसी में 30 दल हैं जो सभी पहाड़ी दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दलों में जीजेएम, जीएनएलएफ और जन आंदोलन पार्टी भी शामिल हैं। हाल ही में जीजेएम प्रमुख बिमल गुरूंग ने एक बयान में कहा था कि केवल उनकी पार्टी को ही हड़ताल वापस लेने का अधिकार है क्योंकि उनकी पार्टी ने ही इसकी शुरूआत की थी। गुरूंग का यह बयान अन्य दलों को रास नहीं आया।
जीएनएलएफ के प्रवक्ता नीरज जिम्बा ने कहा “अगर गुरूंग ही अंतिम फैसला लेते हैं तो जीएमसीसी बनाने की क्या जरूरत थी। जीजेएम को समझना चाहिए कि यह लोगों का आंदोलन है न कि उनका अपना मुद्दा है जो वह अपने विचार हम पर थोप रहे हैं।” जीजेएम के महासचिव रोशन गिरी ने पहाड़ी दलों के दावे खारिज करते हुए कहा “बिमल गुरूंग पहाडय़िों के निर्विवाद नेता हैं। हमने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए सभी पहाड़ी दलों के साथ समन्वय किया है। हमारे खिलाफ आरोप बेबुनियाद हैं।” जीएनएलएफ के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जीजेएम को छोड़ कर ज्यादातर दलों की राय है कि आंदोलन के पास समुचित नेतृत्व का अभाव है जिससे बहुत नुकसान हुआ।
नाम जाहिर न करने के अनुरोध पर उन्होंने कहा “नेतृत्व का गंभीर अभाव है। हालांकि गोरखालैंड के मुद्दे पर हम एकजुट हैं लेकिन नेतृत्व के अभाव में हम लोगों के गुस्से और उनकी महत्वाकांक्षाओं को सही दिशा नहीं दे सके।” उन्होंने कहा “यही वजह है कि जीजेएम अपने ही कैडरों पर नियंत्रण नहीं रख पाया। हम नहीं जानते कि आगे बढऩे का रास्ता क्या है।”