'अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती', SC के आदेश पर भड़के उपराष्ट्रपति धनखड़ - Punjab Kesari
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‘अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती’, SC के आदेश पर भड़के उपराष्ट्रपति धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने SC के आदेश पर जताई नाराजगी

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नाराजगी जताई, जिसमें राष्ट्रपति को विधेयक पर फैसला लेने के लिए समयसीमा दी गई है। उन्होंने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यपालिका का काम करेंगे।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत में लोकतंत्र की कल्पना नहीं की गई थी, जहां जज कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी लेंगे और ‘सुपर पार्लियामेंट’ के रूप में काम करेंगे। उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रपति को विधेयक पर फैसला लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की गई है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह पहली बार है कि राष्ट्रपति को तय समयसीमा के भीतर फैसला लेने के लिए कहा जा रहा है।

‘भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी’

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपित धनखड़ ने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम खुद संभालेंगे और ‘सुपर संसद’ की तरह काम करेंगे। धनखड़ ने कहा, “हाल ही में लिए गए फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बहुत संवेदनशील होना होगा। यह समीक्षा दाखिल करने या न करने का सवाल नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया है। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जा रहा है और यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है।”

न्यायाधीश की कोई जवाबदेही क्यों नहीं – धनखड़

राज्यसभा प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “हमारे पास न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यपालिका का काम खुद संभालेंगे, जो ‘सुपर संसद’ के रूप में काम करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।” धनखड़ ने कहा कि उनकी चिंताएं “बहुत उच्च स्तर” पर हैं और उन्होंने “अपने जीवन में” कभी नहीं सोचा था कि उन्हें यह सब देखने का मौका मिलेगा। उन्होंने उपस्थित लोगों को बताया कि भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसद और न्यायाधीश सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।

अनुच्छेद 145(3) पर बोले उपरष्ट्रपति

उन्होंने आगे कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र शक्ति अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए। जब अनुच्छेद 145(3) था, तब सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या आठ थी, 8 में से 5, अब 30 में से 5 और कुछ। लेकिन यह भूल जाइए कि जिन न्यायाधीशों ने वस्तुतः राष्ट्रपति को आदेश जारी किया और एक परिदृश्य प्रस्तुत किया कि यह देश का कानून होगा, वे संविधान की शक्ति को भूल गए हैं। अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका को 24 *7 उपलब्ध है।

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