नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में सोमवार को पेश होने वाली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अंतिम रिपोर्ट में कम से कम चार विपक्षी दलों की सहमति नहीं है और इस समिति में उनके प्रतिनिधियों ने रिपोर्ट में अपना विरोध दर्ज कराया है। सूत्रों ने रविवार को यह जानकारी दी।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा और समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने बताया कि उनके सदस्यों ने इस विधेयक पर जेपीसी रिपोर्ट में अपनी असहमति दर्ज करायी है।
असहमति भरे नोट में से एक में कहा गया है,‘‘नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पर संयुक्त समिति के सदस्य के तौर पर हम कह सकते हैं कि अंतिम रिपोर्ट में समिति में आम सहमति नहीं थी। हम इस विधेयक के विरुद्ध हैं क्योंकि यह असम में जातीय विभाजन को सतह पर लाता है।’’
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समिति में वाम और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने कहा कि समिति ने गुजरात, राजस्थान और असम का दौरा किया था जहां उसने विधेयक के विरुद्ध विरोध का सामना किया।
वामदल के एक सदस्य ने कहा, ‘‘असम में यह और गंभीर मुद्दा है। असम दौरे के दौरान समिति को प्रदर्शन का सामना भी करना पड़ा। समिति की ओर से हमने इस मुद्दे पर और पक्षकारों से बातचीत करने के लिए राज्य में फिर आने का वादा किया और उन्हें यह भी आश्वासन दिया कि जबतक हम फिर से नहीं मिलेंगे तबतक हम रिपोर्ट नहीं सौंपेंगे। अब, यह असहजकारी है।’’
विरोध करने वाले एक अन्य सदस्य ने नागरिकता से धर्म को जोड़ने पर एतराज करते हुए कहा, ‘‘यही मूल आपत्ति है। अतएव, धर्म को नागरिकता के मुद्दे से अलग कीजिए। यह हमारी सभ्यता, संस्कृति और हमारे संविधान की भावना के विरुद्ध है। नागरिकता को राज्य, धर्म, जाति से नहीं जोड़ा जा सकता या यह देश विशिष्ट नहीं हो सकता। यह सार्वभौमिक होना चाहिए। ’’
तृणमूल के नोट में कहा गया है कि सदस्यों ने समिति के कामकाज के तौर तरीकों को लेकर भी एतराज किया। उन्होंने विधेयक के उपबंध दो में संशोधन पेश किये और छह खास अल्पसंख्यक समुदायों और पड़ोसी देशों के नाम हटाने की मांग की। यह विधेयक को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए था। लेकिन इन संशोधनों को समिति में सत्तारुढ़ दल ने अपने सदस्यों को एकजुट कर पराजित कर दिया।
विपक्षी नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन संबंधी इस विधेयक का लक्ष्य अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों को 11 साल के बजाय छह साल भारत में रहने पर नागरिकता देना है, इससे असम में जातीय विभाजन और सामने आएगी।
असम के सिलचर में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित कराने के केंद्र के संकल्प को दोहराया था।