SC के फैसले के बाद खत्म नहीं हुआ टकराव, सर्विसेज विभाग ने डिप्टी सीएम को लौटाई फाइल - Punjab Kesari
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SC के फैसले के बाद खत्म नहीं हुआ टकराव, सर्विसेज विभाग ने डिप्टी सीएम को लौटाई फाइल

दिल्ली के नौकरशाह के एक वरिष्ठ अफसर ने उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आदेश पर टका सा जवाब देते

आम आदमी पार्टी और उपराज्यपाल अनिल बैजल के बीच चल रहे सियासी गतिरोध को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी दिल्ली में टकराव खत्म होने के आसार कम लग नहीं रहे हैं। फैसले को अभी चंद घंटे ही हुए है की सर्विसेज विभाग ने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की भेजी गई फाइल लौटा दी है। इससे दिल्‍ली में प्रशासनिक संकट दौबारा पैदा हो सकता है। दिल्ली के नौकरशाह के एक वरिष्ठ अफसर ने  सिसोदिया के आदेश पर टका सा जवाब देते हुए उसे मानने से साफ इनकार कर दिया। दिल्ली के सर्विसेज डिपार्टमेंट यानी अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग और सेवा से जुड़े मामलों को देखने वाले विभाग के सचिव ने मनीष सिसोदिया का आदेश वापस लौटा दिया।

सिसोदिया के आदेश को न मानने के पीछे दो तर्क दिए गए हैं। एक तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहीं भी अगस्त 2016 के नोटिफिकेशन को रद्द नहीं किया गया है और दूसरा ये कि इस नोटिफिकेशन में अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल या मुख्य सचिव के पास है। इससे पहले दिल्ली सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर आईएएस समेत तमाम अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर मुख्यमंत्री से अनुमति लेने का फरमान सुनाया था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 239 एए के तहत दी गई शक्तियों की व्याख्या की है। इसके तहत लेफ्टिनेंट गवर्नर को मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने का आदेश दिया गया।

यानी जमीन से जुड़े मामले, कानून-व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास दूसरे सभी मुद्दों पर शासन करने की शक्ति होगी। दरअसल, बुधवार को फैसले के बाद सिसोदिया ने कहा था कि 2 साल पहले हाईकोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार से ट्रांसफर-पोस्टिंग की ताकत छीनकर उपराज्यपाल और मुख्य सचिव को दे दी गई थी। बतौर सर्विसेज विभाग मंत्री मैंने आदेश जारी किया है कि इस व्यवस्था को बदलकर आईएएस और दानिक्स समेत तमाम अधिकारियों की ट्रांसफर या पोस्टिंग के लिए अब मुख्यमंत्री से अनुमति लेनी होगी।

गौरतलब है की सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फ़ैसला दिया है कि कैबिनेट को फैसले लेने का अधिकार है और इसमें एलजी की सहमति ज़रूरी नहीं है, लेकिन एलजी को फैसलों की जानकारी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार अहम है। एलजी और कैबिनेट में छोटे-छोटे मामलों पर मतभेद न हो। अगर राय में अंतर हो तो एलजी मामला राष्ट्रपति के पास भेजें।

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