अयोध्या विवाद : अनुवाद के लिए दिया 3 महीने का वक्त , 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई - Punjab Kesari
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अयोध्या विवाद : अनुवाद के लिए दिया 3 महीने का वक्त , 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई

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अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर आज उच्चतम न्यायालय में 7 वर्ष बाद सुनवाई शुरू हुई। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में कुछ आज सुन्नी वक्फ बोर्ड की मांग पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई फिलहाल 5 दिसंबर तक के लिए टाल दी। उच्चतम न्यायालय ने लगभग चार माह का ये समय सुन्नी वक्फ बोर्ड की मांग पर दिया है। बता दें कि पक्षकारों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। वही किसी भी पार्टी को अब आगे और मोहलत नहीं दी जाएगी और ना ही केस स्थगित की जाएगी।

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आपको बता दें कि वही उच्चतम न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा समय मांगने पर कोर्ट ने यह समय दिया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से दस्तावेजों के अनुवाद के लिए कुछ समय मांगा था।


इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं। वक्फ बोर्ड ने कहा था कि कई दस्तावेज जो दूसरी भाषाओं में हैं, उनका अनुवाद नहीं हो पाया है। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीफ 5 दिसंबर तक के लिए टाल दी।

अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर उच्चतम न्यायालय में आज को शुरू हुई सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबसे पहले पक्ष रखते हुए मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी करने की मांग की। तो वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस बात पर आपत्ति जताई कि उचित प्रक्रिया के बिना यह सुनवाई की जा रही है।

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले सुब्रमण्यम स्वामी ने उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अपील की थी कि इस मामले की जल्द सुनवाई की जाए। जिसके बाद सीजेआई जस्टिस खेहर ने कहा था कि वह इस बात पर सोच रहे हैं कि इसके लिए एक बेंच का गठन कर दिया जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट दोनों पक्ष को मामले में सुलह समझौता करने की पेशकश दी थी। कोर्ट ने पेशकश की थी अगर कोर्ट के बाहर यह मामला आपसी बातचीत से सुलझ जाए तो बेहतर है, यही नहीं अगर दोनों पक्ष चाहें तो उच्चतम न्यायालय मध्यस्थता करने के लिए भी तैयार है और इसके लिए क जज की नियुक्ति की जा सकती है।

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गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने वर्ष 2010 में विवादित स्थल के 2.77 एकड़ क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच बराबर-बराबर हिस्से में विभाजित करने का आदेश दिया था। कुछ महीने पहले उच्चतम न्यायालय ने इस मामले का अदालत से बाहर समाधान निकालने की संभावना तलाशने के लिए कहा था। इसे लेकर पक्षकारों की ओर से प्रयास किए गए लेकिन समाधान नहीं निकल सका। लिहाजा उच्चतम न्यायालय को अब मेरिट के आधार पर ही इस विवाद का निपटारा करना है।

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बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक की लड़ाई हारने के 71 साल बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे शिया वक्फ बोर्ड ने 1946 के ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताया गया था।

बोर्ड ने दावा किया कि बाबर के मंत्री अब्दुल मीर बकी ने इस मस्जिद को बनाने के लिए रकम मुहैया कराई थी। बकी शिया मुसलमान थे। वहीं इससे पहले शिया वक्फ बोर्ड ने कहा था कि ढहाई गई बाबरी मस्जिद उसकी प्रॉपर्टी थी और अब वो मस्जिद को विवादित स्थल से दूर कहीं मुस्लिम बहुल इलाके में बनाना चाहता है।

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