इलाहाबाद HC ने स्वारूपानंद और वासुदेवानंद दोनों को शंकराचार्य मानने से किया इंकार - Punjab Kesari
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इलाहाबाद HC ने स्वारूपानंद और वासुदेवानंद दोनों को शंकराचार्य मानने से किया इंकार

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ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य के पद के विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिष पीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य की पदवी को लेकर स्वामी स्वरुपानन्द सरस्वती और स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती के बीच चल रहे विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर फैसला सुनाते हुए दोनों को ही शंकराचार्य मानने से इंकार कर दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन महीने के अंदर नए शंकराचार्य की नियुक्ति का आदेश दिया है। तीन महीने के अंदर बाकी तीन पीठों के शंकराचार्य मिलकर ज्योतिष्पीठ के लिए योग्य शंकराचार्य चुनेगें।

बद्रीकाश्रम के शंकराचार्य पद को लेकर स्वरूपानंद सरस्वती व वासुदेवानंद सरस्वती के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था। मामला हाई कोर्ट में पेंडिंग था। कोर्ट ने स्वामी वासुदेवानंद को भी शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पद पर दोनों स्वामी स्वरूपानंद और स्वामी वासुदेवानंद का दावा खारिज हो गया है। कोर्ट ने कहा कि ज्योतिष्पीठ को लेकर दीवानी अदालत की स्थायी निषेधाज्ञा नई नियुक्ति तक बरकरार रहेगी। कोर्ट ने सरकार से कहा कि लोगों को फर्जी बाबाओं से बचाने के लिए कदम उठाएं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में ये भी स्पष्ट कर दिया कि नया शंकराचार्य परंपरा के अनुरूप ही चुना जाएगा। इसके लिए अब अन्य तीन पीठों के शंकराचार्य, काशी विद्वत परिषद और भारत धर्म सभा मंडल मिलकर नया शंकराचार्य तय करेंगे। गौरतलब है कि आदि शंकराचार्य ने चार पीठ स्थापित किए हैं। जिनमें से एक उत्तराखंड का बद्रिकाश्रम ज्योतिषपीठ है। इसी ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य पद को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती दोनों ने खुद को इस पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया था। यही मामला निचली अदालत के बाद हाईकोर्ट में पहुंचा तो आज इसकी सुनवाई पूरी हुई और न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया।

हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक तीन महीने तक यथास्थिति कायम रहेगी। वासुदेवानन्द को सन्यासी मानने को लेकर दोनों जजों में मतभेद रहा जहां जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने उन्हें सन्यासी मानने से इनकार किया वहीं जस्टिस ठाकुर ने उन्हें गुरु शिष्य परंपरा में सन्यासी माना है।

हाईकोर्ट के फैसले से स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को बड़ा झटका लगा है। जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस केजे ठाकुर की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाया। इसी साल डेटूडे बेसिस पर हुई सुनवाई के बाद 3 जनवरी को जजमेंट रिजर्व हुआ था। 700 पन्नो में फैसला सुनाया गया।

क्या है ये पूरा मामला

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य पद सन् 1960 से विवाद शुरू हुआ। 1989 में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती इस पीठ के शंकराचार्य बने। तब द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जिला अदालत ने 5 मई 2015 को फैसला सुनाया। अदालत ने स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती को अवैध शंकराचार्य मानते हुए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को शंकराचार्य होने का फैसला सुनाया। इस फैसले को वासुदेवानंद ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया। जिसमें फैसला आया और कोर्ट ने नया शंकराचार्य चुनने का आदेश दिया। एक तरह से अब अगले तीन महीने तक फिर से स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती शंकराचार्य माने जाएंगे। क्योंकि अदालत ने पुराने निर्णय को रद्द कर दिया है।

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