उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में राजधानी दिल्ली में चल रहे उपराज्यपाल और सरकार के बीच लड़ाई को खत्म कराने की कोशिश की। लेकिन अब ऐसा लगता है कि न्यायालय के फैसले के बाद भी ये जंग रुकने का नाम नहीं ले रही है। बुधवार शाम को सर्विसेज़ विभाग ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की फाइल को लौटा दिया। अब इस पर दिल्ली सरकार कदम उठा सकती है।
वहीं, इस बाबत गुरुवार सुबह दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बाकायदा पत्रकार वार्ता कर अधिकारियों को निशाने पर लिया। उन्होंने इशारों में कहा कि कुछ अधिकारी मंत्रियों के आदेशों को नहीं मान रहे हैं, ऐसे में यह सुप्रीम के फैसलों व आदेशों की अवमानना होगी।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि अगर अफसर हमारा आदेश नहीं मानेंगे तो कानून का राज कैसे होगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है। कि केंद्र सरकार के पास सिर्फ तीन बातों पर ही पावर है, बाकी सभी पर दिल्ली सरकार और विधानसभा फैसले ले सकती है। उन्होंने कहा कि अगर अफसर ऐसा करेंगे तो अफरातफरी मचेगी।
सिसोदिया बोले कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि राज्य सरकार और एलजी को मिलकर काम करना होगा। अगर अफसर मंत्रियों के ही आदेश नहीं मानेंगे तो सरकार कैसे चल पाएगी। उन्होंने कहा कि इस पर आगे क्या कदम उठाना है। हम इस पर वकीलों से बात कर रहे हैं।
कोर्ट की व्यवस्था आने के बाद दिल्ली सरकार ने बुधवार को ही कैबिनेट की बैठक बुलाकर मुख्य सचिव को तमाम निर्देश जारी किए थे। वहीं दूसरी ओर सर्विसेज विभाग के अधिकारियों ने सरकार की बात मानने से तब तक इन्कार कर दिया है। जब तक कि कोई नया नोटिफिकेशन जारी नहीं होता।
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नियुक्ति व तबादले के बारे में नया आदेश जारी किया गया लेकिन अधिकारी इसे कानूनी तौर पर गलत बता रहे हैं। सूत्रों की मानें तो शीर्षस्थ अधिकारियों ने इसकी जानकारी भी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को दे दी है।
अधिकारियों ने बता दिया है कि वह इस आदेश को नहीं मानेंगे। नाम उजागर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सेवा संबंधी मामले अभी भी उपराज्यपाल के पास हैं।
आपको बता दे कि दिल्ली सर्विसेज डिपार्टमेंट ने अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता वाली दिल्ली सरकार का अधिकारियों के ट्रांसफर मामले में आदेश मानने से इनकार कर दिया है। मुख्य सचिव ने मनीष सिसोदिया को फाइल लौटा दी है। सर्विसेज डिपार्टमेंट ने दिल्ली सरकार के आदेश को न मानने के पीछे तर्क दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहीं भी अगस्त 2016 में जारी उस नोटिफिकेशन को रद्द नहीं किया गया है जिसमें ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल या मुख्य सचिव के पास है।