एक अनोखा रहस्य : कैसे बने केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में शिव मंदिर, आइए जानें - Punjab Kesari
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एक अनोखा रहस्य : कैसे बने केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में शिव मंदिर, आइए जानें

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आज विज्ञान भले ही कितने उन्नत होने का दावा करे, लेकिन भारत के ज्ञान, विज्ञान और अध्यात्म ने जिस ऊंचाइंयों को छुआ है, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता है। इसकी मिसाल है एक हजार साल से भी पुराने ये आठ शिव मंदिर, जो एक दूसरे से 500 से 600 किमी दूर स्थित हैं। मगर, उनकी देशांतर रेखा एक ही है।  सीधी भाषा में कहें, तो सभी मंदिर एक सीध में स्थापित हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या प्राचीन हिंदू ऋषियों के पास कोई ऐसी तकनीक थी, जिसके माध्यम से उन्होंने भौगोलिक अक्ष को मापा और इन सभी सात शिव मंदिरों को एक सीधी रेखा पर बनाया।

 

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यह संभव हो सकता है क्योंकि बिना किसी माप प्रणाली के इन मंदिरों को एक सीधी रेखा में बनाना संभव नहीं है, खासतौर पर तब जबकि वे एक दूसरे से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये सभी मंदिर भौगोलिक दृष्टि से 79°E,41’,54” देशांतर रेखा पर स्थित हैं। यह साबित करता है कि वर्तमान विज्ञान जिस पर हमें गर्व है, प्राचीन योगिक विज्ञान का 10 फीसद भी नहीं है। जानते हैं कौन से शिव मंदिर हैं ये...

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केदारनाथ मंदिर – (उत्तराखंड ) : – केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। यह समुद्र तल से 11,500 फीट की उंचाई पर मंदाकिनी नदी के पास स्थित है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (30.7352° N, 79.096) देशांतर रेखा पर स्थित हैं। केदारनाथ भारत में हिंदुओं का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। देश के अलग अलग कोने से भक्त हर साल यहां अप्रैल के महीने में भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।

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कलेश्वरम – कलेश्वरा मुक्तेश्वर स्वामी मंदिर – (तेलंगाना) : –  जंगलों से घिरा यह खूबसूरत स्‍थान करीमनगर से 130 किलोमीटर दूर है। यहां का मुक्‍तेश्‍वरा स्‍वामी को समर्पित प्राचीन मंदिर अपने अनोखेपन के कारण भक्‍तों को आकर्षित करता है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (18.799° N, 79.90 ) देशांतर रेखा पर स्थित हैं।  यहीं एकमात्र मंदिर है जहां एक ही आधार पर दो शिवलिंग मिलते हैं। बहुत से मंदिरों में से एक मंदिर ब्रह्मा जी को भी समर्पित जो एक अद्भुत बात है।

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श्री कलाहस्ती – श्री कलाहस्तेश्वरा मंदिर – (आंध्र प्रदेश )श्रीकालाहस्ती आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (30.7352° N, 79.096) देशांतर रेखा पर स्थित हैं। दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है। ये तीर्थ नदी के तट से पर्वत की तलहटी तक फैला हुआ है और लगभग 2000 वर्षों से इसे दक्षिण कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है।

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कांचीपुरम – एकाम्बरेश्वर मंदिर – (तमिलनाडु) :- काँचीपुरम के सैकड़ों मंदिरों में से सबसे वृहद  एकाम्बरेश्वर का शिव मन्दिर है जो शहर के उत्तर दिशा में स्थित है। बस्ती में स्थित 108 शिव मंदिरों में भी यह अग्रणी है।  कई जगह इसे एकाम्बरनाथ(र) भी कहा गया है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (12.94° N, 79.69) देशांतर रेखा पर स्थित हैं। यह मन्दिर 23 एकड़ में फैला हुआ है तथा इसके गोपुरम की ऊँचाई 194 फीट है। इस कारण यह गोपुरम एक अलग श्रेणी में रखा जाता है।  दक्षिण भारत में पंच तत्वों यथा अग्नि रुप में, जल रुप में, आकाश का बोध कराती, वायु का एहसास दिलाती और पृथ्वी को इंगित करती शिव लिंगों की अवधारणा अलग अलग पाँच जगहों में मिलती हैं। एकाम्बरेश्वर में पृथ्वी तत्व मिट्‍टी से बने लिंग से परिलक्षित होता है। अतः यह मन्दिर यहाँ अपूर्व श्रद्धा का केन्द्र है।

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थिरुवनैकवल – जंबुकेश्वर मंदिर – (तमिलनाडु) :-  जंबुकेश्वर, दक्षिण भारत में कावेरी नदी के निकट श्रीरंगमतीर्थ के अंतर्गत एक प्रसिद्ध शैव मंदिर, तीर्थ और जलतत्वप्रधान शिवलिंग। श्रीरंग मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर का लिंग जल में प्रतिष्ठित है। फर्ग्युसन के अनुसार इसका निर्माण १६वीं शताब्दी के अंत में हुआ था। किंतु मंदिर के एक शिलालेख से इसका अस्तित्व शक काल के पूर्व विदित होता है। मंदिर बहुत विशाल तथा विस्तृत है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (10.853° N,79.70 ) देशांतर रेखा पर स्थित हैं।

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तिरुवन्नैमलाई – अन्नामलाइयर मंदिर – (तमिलनाडु ) :-  भारत के तमिलनाडु राज्य स्थित तिरुवन्नमलई जिले में बसा तिरुवन्नमलई एक तीर्थ शहर और नगरपालिका है। यह तिरुवन्नमलई जिले का मुख्यालय भी है। अन्नमलईयर मंदिर इसी तिरुवन्नमलई में बसा हुआ है, जो कि अन्नमलई पहाड़ की तराई में स्थित है और यह मंदिर तमिलनाडु में भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (12.231°N, 79.06) देशांतर रेखा पर स्थित हैं।  लम्बे समय से तिरुवन्नमलई कई योगियों और सिद्धों से जुड़ा रहा है, और सबसे हाल के समय की बात करें तो अरुणाचल की पहाड़ियां, जहां 20वीं सदी के गुरु रमण महर्षि रहते थे, वह एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चर्चित हो चुका है।

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चिदंबरम – थिल्लई नटराज मंदिर – (तमिलनाडु) : –  चिदंबरम मंदिर  भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है जो मंदिरों की नगरी चिदंबरम के मध्य में, पौंडीचेरी से दक्षिण की ओर 78 किलोमीटर की दूरी पर और कुड्डालोर जिले के उत्तर की ओर 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, कुड्डालोर जिला भारत के दक्षिणपूर्वीय राज्य तमिलनाडु का पूर्व-मध्य भाग है। यह मन्दिर भौगोलिक दृष्टि से (11.39°N, 79.69) देशांतर रेखा पर स्थित हैं। संगम क्लासिक्स विडूवेल्वीडुगु पेरुमटक्कन के पारंपरिक विश्वकर्माओं के एक सम्माननीय खानदान की ओर संकेत करता है जो मंदिर पुनर्निर्माण के प्रमुख वास्तुकार थे। मंदिर के इतिहास में कई जीर्णोद्धार हुए हैं। विशेषतः पल्लव/चोल शासकों के द्वारा प्राचीन एवम पूर्व मध्ययुगीन काल के दौरान।

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रामेश्वरम – रामानाथस्वामी मंदिर – (तमिलनाडु) : –  रामेश्वरम्  दक्षिण भारत के तट पर स्थित एक द्वीप-शहर है जो हिंदुओं का पवित्र तीर्थ भी है। उत्तर भारत में काशी (वाराणसी या बनारस) की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। धार्मिक हिंदुओं के लिए वहां की यात्रा उतना की महत्व रखती है, जितना कि काशी की। भौगोलिक दृष्टि से (9.2881°N, 79.317) देशांतर रेखा पर स्थित हैं। रामेश्वरम् मद्रास से कोई 600 किमी दक्षिण में है। रामेश्वरम् एक सुन्दर टापू है। हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी इसको चारों ओर से घेरे हुए है। यहाँ पर रामायण से संबंधित अन्य धार्मिक स्थल भी हैं।

इन 8 मंदिरों में से पांच प्रकृति के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन तत्वों पर पूरे ब्रह्मांड का निर्माण होता है। ये तत्व वायु, जल, अंतरिक्ष/आकाश, पृथ्वी, अग्नि है। इन्हें हिंदू धर्म ग्रंथों में पंच भूत के नाम से जाना जाता है।

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