UP के बागपत में मिली 5000 हज़ार पुरानी कब्रगाह, शव के साथ रथ, चूल्हे, खिलौने भी मिले - Punjab Kesari
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UP के बागपत में मिली 5000 हज़ार पुरानी कब्रगाह, शव के साथ रथ, चूल्हे, खिलौने भी मिले

बागपत जनपद के बरनावा में महाभारतकालीन लाक्षागृह का इतिहास खंगालने पहुंची भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने

उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद के बरनावा में महाभारतकालीन लाक्षागृह का इतिहास खंगालने पहुंची भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने कल उत्खनन कार्य समाप्त कर लिया। इस दौरान अति प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं।

बरनावा उत्खनन में सहयोगी इतिहासकार डॉक्टर अमित राय जैन ने आज यहां बताया कि उत्खनन के दौरान बरनावा में बहु-सांस्कृतिक मानव सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। यहां मिले धूसर मृदभांड पतले तथा चित्रित हैं। ऐसे ही प्रमाण हस्तिनापुर में वर्ष 1952 में प्रोफेसर बी.बी. लाल के निर्देशन में हुए उत्खनन में मिले थे।

जैन के अनुसार गत 15 फरवरी को शुरू हुए इस उत्खनन में बरनावा तथा सिनौली में खुदाई के दौरान मिले कई अहम प्रमाणों से स्पष्ट हो गया है कि बरनावा टीले के नीचे बहु-सांस्कृतिक मानव सभ्यता थी। हालांकि प्रयोगशाला जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि ये वस्तुएं और कंकाल आदि महाभारतकालीन हैं या नहीं। इसके बाद ही बरनावा लाक्षागृह की हकीकत से पर्दा हटेगा।

उन्होंने कहा कि इससे यह तो साफ हो गया है कि दोनों स्थानों पर करीब पांच हजार साल पुरानी एक ही तरह की सभ्यता विकसित हो रही थी। महाभारत का इतिहास भी इतना ही पुराना है, इसलिए बरनावा के महाभारतकालीन होने की संभावनाएं मजबूत हो गई हैं।

जैन ने बताया कि बरनावा में उत्खनन के दौरान मकान, चूल्हे तथा खिलौने मिलने से साफ है कि जहां आज यह टीला है, उसके नीचे कभी कोई बस्ती आबाद थी। उत्खनन में महाभारत काल से लेकर मौर्य सभ्यता, तुंग सभ्यता, कुषाण, गुप्त, राजपूत तथा मुगल काल के अवशेष मिले हैं।

उन्होंने बताया कि गत 15 फरवरी को बरनावा उत्खनन की टीम ने यहां ट्रायल ट्रेंच लगाया तो ताम्रयुगीन सभ्यता की तलवारें आदि मिली थीं। वहां से प्राप्त करीब 5,000 वर्ष पुरानी सभ्यता का शवाधान केंद्र प्राप्त हुआ, जिसे दुर्लभतम श्रेणी में रखा गया है। एएसआई के निदेशक को संस्थान ने प्रस्ताव भेजा है कि अगले सत्र में यहां काफी बड़े हिस्से में उत्खनन किया जाए।

जैन के अनुसार ताबूत के अंदर दफन योद्धा के शस्त्र-अस्त्र, आभूषण, दैनिक उपयोग के खाद्य पदार्थ, मृदभांड आदि तो प्राप्त हुए ही हैं। साथ ही उसी योद्धा द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले युद्ध रथ भी दफन किए गए हैं जोकि पहली बार भारत में प्राप्त हुए है। कार्बनडेटिंग से यह भी सिद्ध हो चुका है कि प्राप्त पुरावशेष व कंकाल 4500 वर्ष से अधिक पुराने हैं और यह समय महाभारत काल का समय कहा जाता है।

मालूम हो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं पुरातत्व सर्वेक्षण लाल किला के संयुक्त तत्वावधान में सिनौली में चल रहे उत्खनन का सोमवार को विधिवत समापन उत्खनन निदेशक डॉक्टर संजय मंजुल और डॉक्टर अरविन मंजुल ने किया। इस दौरान इतिहासकार अमित राय जैन, डॉक्टर के.के. शर्मा और डॉक्टर अमित पाठक ने शोधकर्ताओं को सिनौली सभ्यता के बारे में जानकारी दी।

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