लोकसभा से एक बार फिर तीन तलाक बिल पास हो गया है। आपको बता दे कि कांग्रेस, बसपा, डीएमके, एनसीपी समेत कई विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया जबकि टीएमसी और सरकार की सहयोगी जेडीयू ने सदन से वॉक आउट कर दिया है।
यह बिल पिछली लोकसभा से पास हो चुका था लेकिन राज्यसभा से इस बिल को वापस कर दिया गया था।
इसके बाद 16वीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद इस लोकसभा में सरकार कुछ बदलावों के साथ फिर से बिल को लेकर आई है। अब इस बिल को राज्यसभा से पारित कराने की चुनौती सरकार के सामने हैं जहां एनडीए के पास पूर्ण बहुमत नहीं है।
इससे पहले विधेयक पर सदन में पाँच घंटे चली चर्चा और विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद के चर्चा पर जवाब के बाद जब मंत्री ने विधेयक को विचार के लिए रखने का प्रस्ताव किया तो विपक्ष ने इसका विरोध करते हुये मतविभाजन की माँग की।
हालाँकि 82 के मुकाबले 303 मतों से विधेयक को विचार के लिए स्वीकार कर लिया गया। विपक्ष के सभी संशोधन भी खारिज हो गये जिनमें कुछ पर मतदान विभाजन भी हुआ।
इस विधेयक में तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया गया है तथा तीन तलाक देने वालों को तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है। साथ ही जिस महिला को तीन तलाक दिया गया है उसके और उसके बच्चों के भरण-पोषण के लिए आरोपी को मासिक गुजारा भत्ता भी देना होगा। मौखिक, इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी माध्यम से तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक को इसमें गैर-कानूनी बनाया गया है।
यह विधेयक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) दूसरा अध्यादेश, 2019 का स्थान लेगा जो इस साल 21 फरवरी को प्रभाव में आया था। इस विधेयक को सदन में पेश करते समय 21 जून को भी मतविभाजन हुआ था जिसमें 186 सदस्यों ने इसे पेश करने के समर्थन में और 74 सदस्यों ने विरोध में मत दिया था।
श्री प्रसाद ने चर्चा का जवाब देते हुए विपक्ष पर तीखे हमले किये और सफाई भी दी कि इस विधेयक में तीन तलाक देने का दोषी पाये जाने पर पति के लिए दंडात्मक प्रावधान कुप्रथा के अवरोध के रूप में किया गया है। ये प्रावधान हिन्दुओं में बाल विवाह पर रोक लगाने संबंधी 1955 के शारदा अधिनियम, 1961 के दहेज प्रथा उन्मूलन कानून, 1983 के भारतीय दंड विधान की धारा 498 के अनुरूप ही रखे गये हैं।
पिछली लोकसभा में दो बार यह विधेयक अलग-अलग स्वरूपों में पारित किया गया था, लेकिन राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका। नयी लोकसभा के गठन के बाद इसे नये सिरे से सदन में लाना पड़ा।
विधेयक में प्रावधान है कि तीन तलाक देने वाले आरोपी के खिलाफ सिर्फ पीड़ित , उससे खून का रिश्ता रखने वाले और विवाह से बने उसके रिश्तेदार ही प्राथमिकी दर्ज करा पायेंगे। आरोपी पति को मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत मिल सकती है। पीड़ति को सुनने के बाद मजिस्ट्रेट को यथोचित शर्तों पर सुलह कराने का भी अधिकार दिया गया है।
विपक्ष की ओर से तृणमूल कांग्रेस ने विधेयक को आपराधिक श्रेणी में रखे जाने के विरोध में बहिर्गमन किया। इसके साथ ही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और जनता दल यूनाइटेड के सदस्य भी विधेयक का विरोध करते हुये सदन से बाहर चले गये।
श्री प्रसाद ने कहा कि 2017 में उच्चतम न्यायालय द्वारा सायराबानो मामले में तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानूनी करार दिये जाने के बाद से अब तक 574 ऐसे मामले सामने आये हैं। उन्होंने कहा कि अध्यादेश आने के बाद ऐसे 101 मामले आये हैं। पीड़ति महिलाएं जब पुलिस के पास गयीं तो पुलिस ने कहा कि उनके पास शक्तियां नहीं हैं।
उन्होंने सवाल किया ‘‘क्या हम इन खवातीनों को सड़क पर पड़े रहने के लिए छोड़ दें? मैं नरेन्द, मोदी की सरकार का मंत्री हूँ, राजीव गाँधी की सरकार का नहीं।’’ उन्होंने कहा कि 20 से अधिक देशों में तलाक-ए-बिद्दत पर रोक है जिनमें पाकिस्तान, बंगलादेश, सीरिया, मलेशिया आदि देश शामिल हैं। जहां शरीया लागू है वहां भी बदलाव हो सकता है, तो हम तो धर्मनिरपेक्ष देश हैं; हम तो कर ही सकते हैं।
उन्होंने कहा कि जिस प्रथा को पैगंबर मोहम्मद ने गलत माना, उसे देश के मुसलमानों को गलत मानने में क्यों ऐतराज है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपेक्षा थी कि सदन में बैठे मुस्लिम समाज के लोग अपनी जमात को समझाएंगे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया।
कानून मंत्री ने कहा, ‘‘हम 1955 के शारदा अधिनियम, 1961 के दहेज प्रथा उन्मूलन और 1983 के भारतीय दंड विधान की धारा 498 के लिए कांग्रेस की तत्कालीन सरकारों का अभिनंदन करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि 1986 में शाहबानो का मामला आते ही उसके पाँव क्यों हिलने लगते हैं।’’ उन्होंने कहा कि 125 रुपये के गुजारा भत्ते के लिए कांग्रेस ने शाहबानो से लेकर सायराबानो तक की यात्रा कर ली है।