न्यायालय ने कहा : भारत में अफ्रीकी चीतों को बसाने की परियोजना के खिलाफ नहीं - Punjab Kesari
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न्यायालय ने कहा : भारत में अफ्रीकी चीतों को बसाने की परियोजना के खिलाफ नहीं

कार्ययोजना तैयार की जायेगी। प्राधिकरण ने कहा कि मप्र सरकार ने नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में चीते फिर से

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह अफ्रीकी चीतों को नामीबिया से भारत लाकर मध्यप्रदेश स्थित नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में बसाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के खिलाफ नहीं है। न्यायालय ने कहा कि बाघ-चीते के बीच टकराव के कोई सबूत रिकार्ड में नहीं हैं। 
न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने पशुओं को अन्यत्र स्थानों पर बसाने के मामले में न्यायालय की मदद कर रहे अधिवक्ता से इस बारे में उनका दृष्टिकोण जानना चाहा। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वसीम कादरी ने पीठ को सूचित किया कि अभयारण्य में बाघ और तेंदुए जैसे कई जानवर रहते हैं। 
इस पर पीठ ने कहा कि उसे कैसे पता चलेगा कि चीता यहां के माहौल में जीवित रह सकेगा। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की इस पहल से सहमति व्यक्त की और कहा कि वह अफ्रीकी चीतों को मध्य प्रदेश में बसाने का प्रयोग करने की नीति के खिलाफ नहीं है। 
इसके साथ ही पीठ ने इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद करने का निश्चय किया। इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही कादरी ने कहा कि न्याय-मित्र की यह टिप्पणी पूरी तरह गलत है कि यह क्षेत्र चीते के रहने की पसंदीदा जगह नहीं है। 
प्राधिकरण ने कहा कि चीतों को बसाने के लिये व्यावहारिक पाये गये सभी स्थानों का फिर से आकलन किया जायेगा और इन्हें बसाने से पहले इनके लिये जरूरी उपायों के लिये कार्ययोजना तैयार की जायेगी। प्राधिकरण ने कहा कि मप्र सरकार ने नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में चीते फिर से बसाने के बारे में पत्र लिखा है। 
प्राधिकरण ने 22 फरवरी को शीर्ष अदालत से कहा था कि नामीबिया से भारत में बसाये जाने वाले अफ्रीकी चीतों को मप्र के नौरादेही अभयारण्य में रखा जायेगा। भारत में अंतिम धब्बेदार चीते की 1947 में मृत्यु हो गयी थी और 1952 में इस वन्यजीव को देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। 

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