सरकारी आवासों पर अनधिकृत कब्जों को हटाने से संबंधित संशोधन विधेयक को आज राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। इसके साथ ही इस पर संसद की मुहर लग गयी। लोकसभा ने गत 31 जुलाई को इस विधेयक को पारित किया था।
आवास और शहरी कार्य मंत्री हरदीपसिंह पुरी ने ‘‘सरकारी स्थान (अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) संशोधन विधेयक 2019’’ पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में यह परंपरा बन गयी थी कि सरकारी अधिकारी और सांसद सरकारी आवासों को लंबे समय तक खाली नहीं करते थे जिससे नये अधिकारियों और सांसदों को आवास नहीं मिल पाते थे।
उन्होंने कहा कि सरकारी आवासों पर अनधिकृत कब्जे के 3081 मामले कोर्ट में चल रहे थे। इस समस्या को देखते हुए यह संशोधन विधेयक लाया गया है।
उन्होंने कहा कि नियम के अनुसार सरकारी अधिकारी को सेवानिवृत्ति के बाद स्वत: ही सरकारी आवास खाली कर देना चाहिए। सरकारी कर्मचारियों के लिए व्यवस्था है कि उन्हें सेवानिवृत्ति के छह माह के भीतर अपना घर छोड़ देना चाहिए।
सांसदों तथा अन्य जन प्रतिनिधियों के लिए एक माह की समय अवधि तय है, लेकिन कुछ लोग इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। इससे असुविधा होती है और जो नये लोग उनके स्थान पर सरकारी आवास की सुविधा लेने के हकदार होते हैं, उनका हक मारा जाता है।
उन्होंने कहा कि विधेयक में व्यवस्था की गयी है कि यदि व्यक्ति बार-बार कहने के बावजूद अनधिकृत रूप से कब्जाये गये आवास को खाली नहीं करता है तो उसे आखिर में नोटिस दिया जायेगा और तीन दिन के भीतर उसे हर हाल में यह आवास खाली करना पड़गा। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्रवाई करते हुए सभी तरह के मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखा जायेगा। उनके जवाब के बाद सदन ने विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया।
इसके बाद सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि जब वह शहरी विकास मंत्री थे उन्हें पता चला कि सांसदों और अधिकारियों द्वारा समय पर सरकारी आवास खाली नहीं किये जाने से सरकारी खजाने को करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पड़ता है तो उन्होंने इस बारे में सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया था।