पितृपक्ष : यह संसार नश्वर है। प्रकृति ने इसका निर्माण इस प्रकार से किया है सभी चीजें धीरे-धीरे नष्ट होने की प्रक्रिया से गुजरती हैं। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह सिद्ध किया है कि पहाड़ों का भी क्षय होता है। आप किसी पुराने किले में भी देख सकते हैं कि वहां पर लगे हुए पत्थर भी कुछ हद तक क्षय हो रहे हैं। यह प्रक्रिया निर्जीव और सजीव सभी पर समान रूप से लागू होती है। मनुष्य हो या कोई दूसरा जीव एक निश्चित या अनिश्चित समय के साथ नष्ट हो जाता है। मनुष्य चूंकि सामाजिक प्राणी है। इसलिए उसका यह समझना है कि सभी मृतकों की आत्माएं पुनर्जन्म नहीं लेती हैं, कुछेक भटकती रहती है।
मूलतः इन आत्माओं की तृप्ति के लिए उसके देहावसान की तिथि को उसके निमित्त ब्राहमण भोजन कराया जाता है। और यह विश्वास किया जाता है कि इस माध्यम से यह भोजन आत्मा को प्राप्त होता है। श्राद्ध केवल पिता-माता का ही नहीं बल्कि हमारे तमाम पूर्वजों का भी किया जाता है। इसलिए समस्त श्राद्ध पखवाड़े में प्रति दिन कुछ न कुछ मात्रा में श्राद्ध निमित्त भोजन निकालना चाहिए, जिससे जिस किसी हमारे पूर्वज की तिथि का हमें ज्ञान नहीं उनकी आत्माओं को भी अपना भाग मिल सके।
सम्राट शाहजहां ने की थी पितृ पक्ष की प्रशंसा
शाहजहां ने हिंदुस्तान पर 1628 से 1658 तक राज किया था। उनका शासनकाल स्थापत्य कला में स्वर्ण युग माना जाता है। लेकिन कालांतर में उनके पुत्र औरंगजेब ने हिन्दुस्तान की सत्ता पाने के लिए अपने पिता शाहजहां को कैद में डाल दिया और उसे बहुत सीमित मात्रा में भोजन भेजता था। यहां तक कि पानी भी निश्चित मात्रा में दिया जाता था। शाहजहां कोई साधारण पुरुष तो था नहीं। कैद और भोजन पानी की कमी से त्रस्त होकर शाहजहां ने लिखा –
ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी,
ब पिदरे जिंदा आब तरसानी,
आफरीन बाद हिंदवान सद बार,
मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब।
इसका अर्थ है कि – तू अजीब मुसलमान है। तू अपने जीवित पिता को भी पानी नहीं दे पाता है। यहां के हिन्दू प्रशंसा के पात्र हैं जो न केवल जीवित बल्कि अपने मृत माता-पिता को भी भोजन पानी देते हैं।
श्राद्ध पखवाड़ा कब होता है
हमारे पूर्वज जो इस धरा पर अब नहीं हैं उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए उन्हें जो भोजन आदि दान के माध्यम से दिया जाता है। इसे ही श्राद्ध कहा जाता है। सनातन धर्म में अपने पूर्वजों को भोजन देने के लिए 16 दिनों की एक विशेष समावधि का भी प्रावधान है। इसे श्राद्ध पखवाड़ा भी कहा जाता है। यह पखवाड़ा प्रतिवर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक रहता है। तिथियों के घटने या बढ़ने की गणितीय प्रक्रिया के कारण इस में एक या दो दिनों की संख्या कम या ज्यादा हो सकती है। ऐसा तिथियों की चन्द्रमा की गति के कारण होता है।
पितृ पक्ष में मृत व्यक्ति के देहवसान की जो तिथि होती है। उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
यह माना जाता है कि जब कोई आत्मा अपना शरीर छोड़ती है तो उसकी तृप्ति और मुक्ति के लिए जरूरी क्रिया-कर्म करने आवश्यक होते हैं। कुछ मामलों में ऐसा नहीं हो पाता है। श्राद्ध पक्ष का पखवाड़ा उस कमी को पूर्ण करता है। इसलिए सभी लोगों को श्राद्ध पक्ष के पखवाड़े में श्राद्ध का आयोजन करके अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। जिन लोगों के जन्मांग चक्र में पितृ दोष है, उनके लिए पितृदोष शान्ति के लिए यह पखवाड़ा विशेष फलदायी माना जाता है। यदि कुंडली में गंभीर पितृ दोष हो तो किसी तीर्थस्थान, नदी या तालाब के किनारे, शिव मंदिर या श्मशान में पितृ दोष के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म करने से पितृ दोष की शान्ति होती है और शीघ्र ही शुभ फलों की प्राप्ति होने लगती है।
पितृ पक्ष 2024 श्राद्ध तिथियां
17 सितम्बर को भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि प्रातः 11 बजकर 45 मिनट तक ही है। उसके बाद पूर्णिमा की शुरूआत हो जायेगी पूर्णिमा तिथि 18 सितम्बर को प्रातः 8 बजे तक ही रहेगी। इसलिए कुछ विद्वानों के मत से पूर्णिमा का श्राद्ध 17 सितम्बर को आयोज्य किया जा सकता है। तथापि उदय तिथि के आधार पर देखें तो पूर्णिमा का श्राद्ध 18 सितम्बर को होना चाहिए। और यही शास्त्र सम्मत भी है। इसलिए मैंने यहां पर 18 सितम्बर को पूर्णिमा और प्रतिपदा दोनों के श्राद्ध एक ही दिन करने का लिखा है।
– 18 सितंबर 2024, बुधवार। पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध।
– 19 सितंबर 2024, गुरुवार। द्वितीया का श्राद्ध।
– 20 सितंबर 2024,शुक्रवार। तृतीया का श्राद्ध।
– 21 सितंबर 2024, शनिवार। चतुर्थी का श्राद्ध।
– 22 सितंबर 2024, रविवार। पंचमी और षष्ठी का श्राद्ध।
– 23 सितंबर 2024, सोमवार। सप्तमी का श्राद्ध।
– 24 सितंबर 2024, मंगलवार। अष्टमी का श्राद्ध।
– 25 सितंबर 2024, बुधवार। नवमी का श्राद्ध।
– 26 सितंबर 2024, गुरुवार। दशमी का श्राद्ध।
– 27 सितंबर 2024, शुक्रवार। एकादशी का श्राद्ध।
– 29 सितंबर 2024, रविवार। द्वादशी का श्राद्ध।
– 30 सितंबर 2024, सोमवार। त्रयोदशी का श्राद्ध।
– 1 अक्टूबर 2024, मंगलवार। चतुर्दशी का श्राद्ध।
– 2 अक्टूबर 2024, बुधवार। सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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