कब है श्री हनुमान जयंती, इसकी विशेषता और क्या कहती है पौराणिक कथाएं - Punjab Kesari
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कब है श्री हनुमान जयंती, इसकी विशेषता और क्या कहती है पौराणिक कथाएं

हनुमान जयंती: जानिए पौराणिक कथाओं का महत्व

श्री हनुमान जयंती हर साल चैत्र पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो इस साल 12 अप्रैल को है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है और उनकी आराधना से कष्टों का निवारण होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी का जन्म दो तिथियों पर माना जाता है – चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा। भक्तजन दोनों ही तिथियों को उत्साहपूर्वक मनाते हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे लोकप्रिय देवता यदि कोई है तो श्री हनुमान जी हैं। इसलिए केवल भारत ही नहीं बल्कि बाहर के देशों में भी हनुमान भक्त मिल जाते हैं। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। जब सभी तरह से निराशा का वातावरण बन जाये तो श्री हनुमान जी की आराधना से कष्ट निवारण होते हैं। आगामी 12 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा है। प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा को श्री हनुमान जयंती मनाई जाती है। 12 अप्रैल 2025 को अपने घर या कार्यालय में हनुमानजी का एक सुन्दर और मोहक चित्र अवश्य लगाना चाहिए। इससे व्यापार में वृद्धि होती है और घर में सुख और समृद्धि आती है। हमेशा ध्यान रखें कि श्री हनुमान जी रूद्र अवतार होने के कारण भगवान शिव की ही तरह अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

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कब मनाई जाती है हनुमान जयंती

हालांकि पौराणिक मतों में श्री हनुमानजी के जन्म के संबंध में एकरूपता नहीं है, जैसा कि भगवान श्रीराम के जन्म के संबंध में है। कम से एक वर्ष में दो तिथियों को श्री हनुमान जयंती मनाए जाने की परम्परा है। जैसे प्रति वर्ष चैत्र पूर्णिमा को श्री हनुमान जयंती मनाई जाती है उसी प्रकार से आश्विन पूर्णिमा को भी श्री हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाने की परम्परा है। राजस्थान के सालासर बालाजी का भव्य मेला आश्विन पूर्णिमा को ही आयोज्य होता है। हालांकि चैत्र पूर्णिमा को भी मेला लगता है लेकिन आश्विन पूर्णिमा को ज्यादा श्रद्धालु आते हैं।

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क्या कहती हैं ज्योतिषीय गणनाएं

ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि श्री हनुमान के अवतरित होने के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं। आधुनिक युग में भी एक विक्रम संवत् वर्ष में श्री हनुमान जी की दो जयंतियां मनाई जाती हैं। हालांकि भक्त लोग इन गणितीय प्रपंच से दूर रह कर दोनों ही जयन्तियां पूरे उत्साह से मनाते हैं। वायु पुराण के अनुसार श्री हनुमान जी का जन्म आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी तिथि को स्वाति नक्षत्र में हुआ। इस दिन मंगलवार था। आपका जन्म मेष लग्न में हुआ। वर्तमान ज्योतिषियों ने पौराणिक मत से गणना करके श्री हनुमान का जन्म 3 सितंबर 5139 ईसापूर्व गोधुली बेला में होना माना है। श्री हनुमान जी के अवतरण की अनेकों कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। इनमें वाल्मीकि रामायण, स्कन्द पुराण, शिव पुराण प्रमुख हैं। हालांकि कथाओं में कुछ भिन्नताएं हैं। तथापि सभी जगहों पर उनकी माता अंजनी देवी, पिता केसरी और अवतार रूद्र का माना है।

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बालक हनुमान बहुत नटखट थे

श्री हनुमान जी का बाल्यकाल बहुत नाटकीय रहा। वे विष्णु अवतार श्रीकृष्ण की तरह बहुत चंचल थे। एक समय जब सूर्योदय हो रहा था। बालक हनुमान ने सूर्य को पर्वत मालाओं के मध्य किसी लाल फल की भांति समझा। वे उसे प्राप्त करने के लिए उड़े। दुर्भाग्य से उस दिन अमावस्या तिथि थी और कुछ ही क्षणों में सूर्य ग्रहण होने को था। राहु के द्वारा सूर्य का ग्रहण तय था। बालक हनुमान ने राहु को फल प्राप्त करने में अपना प्रतिद्वंद्वी समझ कर उसे अपनी बाहों में जकड़ कर ऐसा दबाया कि राहु महाराज को अपने प्राणों की फ्रिक होने लगी। सूर्य ग्रहण की अपनी स्वाभाविक गति को विस्मृत करके राहु महाराज किसी प्रकार से अपने प्राण बचा पाए। राहु ने देवराज इन्द्र से इस संबंध में शिकायत की कि कोई बालक उसके धर्म पालन में बाधा उत्पन्न कर रहा है। देवराज इन्द्र आश्यर्च चकित रह गए। ऐसा कौन है जो राहु को उनके स्वाभाविक कार्य को करने से रोक सके। वे अपने ऐरावत हाथी पर सवार होकर घटनास्थल पर पहुंचे। स्थिति की गंभीरता को भांप कर इन्द्र ने अपने वज्र का प्रहार बालक हनुमान पर किया। वज्र का प्रहार हनुमान की ठोडी पर हुआ और वे अचेत होकर भूमि पर गिरने लगे। पिता पवन देव अपने मुचर््िछत पुत्र को हवा में ही थाम कर एक अंधेरी गुफा में प्रवेश कर गये।

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इन्द्र को अपनी भूल का अहसास हुआ

पवन देव के गुफा में प्रवेश करने से वायु की गति क्रमशः बन्द होने लगी। इससे पृथ्वी के सभी प्राणियों को सांस लेने में कठिनाई का अनुभव हुआ। अन्ततः इन्द्र को अपनी भूल का अहसास हुआ। परन्तु वे विवश थे। समस्या के समाधान के लिए इन्द्रदेव मनुष्यों, गन्धर्वों, देवता और असुरों के प्रतिनिधियों के साथ ब्रह्माजी के समझ उपस्थित हुए। उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया। और सहयोग की अपेक्षा की। ब्रह्माजी सभी देवताओं और दूसरे लोगों के साथ गुफा के द्वार पर पहुंचे। गुफा में पवन देव अपने पुत्र हनुमान को गोद में उठाए अश्रु बहा रहे थे। आदिदेव को देख कर उन्होंने तुरंत दण्डवत प्रणाम किया। आदिदेव ब्रह्माजी ने स्नेहपूर्वक हनुमान के मस्तक का स्पर्श किया। बालक हनुमान तुरन्त सचेत होकर बाल क्रीड़ा करने लगे। ब्रह्माजी ने कहा- है कपिश्रेष्ठ! यह बालक साधारण नहीं है। कालांतर में यह देवताओ और मनुष्यों के अनेकों कार्यों में सहभागी बनेगा। अतः सभी देवताओं को इसे वरदान देना चाहिए।

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बालक हनुमान को मिले सभी देवताओं से वरदान

ब्रह्माजी की सलाह के अनुसार सभी ने बालक हनुमान को वरदान प्रदान किये। स्वयं ब्रह्माजी ने उन्हें ब्रह्म शाप नहीं लगने का वर दिया। इंद्रदेव ने अपने व्रज को हनुमान पर हमेशा के लिए निष्प्रभावी कर दिया। यमराज ने ताउम्र हनुमान को बल, स्वास्थ्य और दीर्घ आयु प्रदान की। सूर्यदेव ने बालक हनुमान को अपना शिष्य स्वीकार किया। और समय आने पर शिक्षा देने का वचन दिया। भगवान शंकर ने स्वयं और अपने अधीन योद्धाओं से अपराजित रहने का वर दिया। भगवान श्री विश्वकर्मा जी ने कहा कि उनके द्वारा बनाए अस्त्र-शस्त्र हनुमानजी पर प्रभावी नहीं होंगे। इसी प्रकार से सभी देवताओं ने अपने-अपने सामर्थ्य अनुसार वर प्रदान किये। इस प्रकार वरदानों की अनेकों अलौकिक शक्तियों से संपन्न बालक हनुमान अद्भुत और रोमांचकारी कार्य करने के लिए तैयार हो चुके थे।

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जाम्बवत ने श्री हनुमान को उनका बल याद दिलाया

कालातंर में बालक हनुमान अपनी असीम शक्तियों के बल पर और ज्यादा शैतानी पर उतर आये। कुछ ऋषियों ने रोज-रोज की परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए बालक हनुमान को अपनी शक्तियों को भूल जाने का श्राप दे दिया। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि समय आने पर कोई इनके असीम बल के बारे में स्मरण कराया तो ही इनको अपने बल के बारे में जानकारी होगी।

इस घटना के बाद बालक हनुमान सरल और सौम्य स्वभाव के हो गये। जब सीता माता की खोज के लिए लंका को लांघने की बात आई तो जाम्बवत ने हनुमानजी को उनके बल के बारे में परिचय कराया। जाम्बवत श्राप की घटना से पूर्व परिचित थे। उस दिन हनुमान पुनः शक्ति संपन्न हुए। और अपने इष्ट श्रीराम के निर्देशन में देवों और मनुष्यों के अनेक कार्य सिद्ध किये।

श्री हनुमान सेवाभावी, भक्त, परम शक्तिशाली और ब्रह्मविद्या के ज्ञाता हैं। इनको सभी देवताओं का आशीर्वाद और वर तो प्राप्त है ही, साथ ही देवी सीता ने आपको अजर-अमर होने का वरदान भी दिया था।

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हनुमान चालीसा की चौपाइयों में अद्भुत शक्ति

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह चालीस चौपाइयों की हनुमत प्रार्थना है। तुलसीदास जी रचित ये चालीस चौपाई बहुत ही सरल और आमजन की भाषा में है। आम धारणा है कि तुलसीदास जी और श्री हनुमान के मध्य साक्षात्कार हुआ था। यह सब रामचरितमानस की रचना से पूर्व की बात है। यह भी संभव है कि तुलसीदासजी ने रामचरितमानस की रचना श्री हनुमान के निर्देश पर ही की हो। श्री हनुमान चालीसा का पठन और मनन न केवल सहज है बल्कि इसमें एक लय भी दिखाई देती है। जो आराध्य में ध्यान को बनाए रखने में मदद करती है।

हनुमान चालीसा की चौपाइयों में रामायण की उन कुछेक घटनाओं का चित्रण है जो कि हनुमानजी से सम्बन्धित है, जैसे –

लाय सजीवन लखन जियाये।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।

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चौपाइयों में छिपा है श्री हनुमान जी का जीवन परिचय

इन कुछ चौपाइयों के अतिरिक्त शेष में श्री हनुमान जी का संक्षिप्त जीवन परिचय और स्तुति है। हनुमान चालीसा का सरल और प्रभावी होना ही इसकी लोकप्रियता का कारण है। बहुत से गृहस्थ साधक मात्र हनुमान चालीसा के पाठ से अनेक सिद्धियां प्राप्त करते रहे हैं। इसमें कोई शंका नहीं है कि यह एक तांत्रिक प्रयोग भी है और बहुत ही चमत्कारी है। जो लोग व्यस्त रहते हैं और पूजा-पाठ में पूरा समय नहीं दे पाते हैं उन्हें प्रातः नित्यकर्मों से निवृत्त होकर हनुमान चालीसा का एक या पांच पाठ अवश्य संपन्न करने चाहिए। इसमें मात्र दो मिनिट का समय लगता है। और बदले में चौबीसों घंटे श्री हनुमान जी की कृपा बनी रहती है। श्री हनुमान उपासना के दूसरे भी अनेक प्रयोग हैं। साधारणतया बजरंग बाण, संकट मोचन और हनुमान अष्टक प्रसिद्ध हैं। लेकिन आप जैसे भी उपासना करें हमेशा कुछ बातों का ध्यान में रखें कि श्रीहनुमान बहुत ही सात्विक देव हैं। इसलिए इनसे तारतम्य यदि आपको बैठाना है तो न केवल शारीरिक शुद्धता का ध्यान रखना होगा बल्कि मानसिक शुद्धता भी बहुत जरूरी है। हनुमान जी सभी सिद्धियों के दाता हैं। यदि कुछ बातों का ध्यान रखकर श्री पवन पुत्र की आराधना की जाए तो शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है।

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क्यों चढ़ाया जाता है श्री हनुमान जी सिंदूर

भगवान श्री राम वनवास के उपरान्त जब अयोध्या पर शासन कर रहे थे, तब की बात है। एक दिन श्री हनुमान जी ने देखा कि माता सीता अपनी मांग में सिंदूर लगा रही है। श्री हनुमान ने बहुत आश्चर्य से माता से प्रश्न किया कि इस सिन्दूर लगाने का क्या औचित्य है। सीता ने प्रसन्नता से उत्तर दिया कि इससे भगवान राम की आयु में वृद्धि होती है। दूसरे ही दिन सभी सभासद आश्चर्यचकित थे कि श्रीहनुमान ने अपने पूरे शरीर पर ही सिंदूर का लेप कर रखा है। इस संबंध में श्रीहनुमान का कहना था कि माता सीता के चुटकी भर सिंदूर लगाने से ही श्रीराम की आयु वृद्धि होती है तो उन्होंने अपने पूरे शरीर पर ही सिंदूर का लेप कर लिया है जिससे उनके आराध्य श्रीराम की आयु सैकड़ों-हजारों वर्षों हो जायेगी। सभी सभासद श्रीहनुमान के निश्छल प्रेम के आगे नतमस्तक हो गए। इस दृष्टान्त के माध्यम से मैं श्री हनुमान के भक्तों को यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि श्री हनुमान की किसी भी प्रकार से उपासना से पूर्व या उपरान्त श्रीराम की स्तुति की जानी आवश्यक है। क्योंकि श्रीहनुमान को वे भक्त बहुत प्रिय है जो श्रीराम की स्तुति करते हैं। इसलिए विद्वानों का मत है कि जो श्रीराम की उपासना करते हैं, उन पर श्री हनुमान जी की कृपा सहज ही बनी रहती है। इस बात में कोई संशय नहीं है।

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