Vastu Tips: स्वास्तिक के उपयोग से दूर करें वास्तु दोष - Punjab Kesari
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Vastu Tips: स्वास्तिक के उपयोग से दूर करें वास्तु दोष

वास्तु दोष हटाने के लिए स्वास्तिक का सही उपयोग

स्वास्तिक का प्रतीक वैदिक काल से प्रचलित है और इसे शुभ कार्यों में अनिवार्य माना जाता है। इसका सही उपयोग घर की समस्याओं जैसे मानसिक तनाव और आर्थिक कठिनाइयों को दूर कर सकता है। मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का अंकन वास्तु दोष को कम करता है, जो घर की समृद्धि और सुख-शांति के लिए आवश्यक है।

माना जाता है कि स्वास्तिक का प्रतीक वैदिक काल से प्रचलन में है। स्वास्तिक की प्राचीनता के बारे में बात करें तो मोहनजोड़ों में कुछ स्वास्तिक की मोहरे प्राप्त हुई हैं। जो कि ब्रिटेन के राष्टिय संग्राहलय में सुरक्षित रखी हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि स्वास्तिक का उपयोग कम से कम सात हजार वर्षों से होता रहा है। आधुनिक काल में भी स्वास्तिक का उपयोग बहुतायत में हो रहा है। आज भी हिन्दू धर्म में बिना स्वास्तिक के उपयोग के कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होता है। स्वास्तिक मंगलकारी चिह्न है इसलिए जिस घर या परिसर में स्वास्तिक का अंकन नहीं होता है वह शीघ्र ही निर्जन हो जाता है। इसलिए सभी घरों में स्वास्तिक का प्रयोग अवश्यंभावी होना चाहिए।

सामान्य दृष्टि से देखने से स्वास्तिक एक सामान्य ज्यामिति आकृति दिखाई देती है। लेकिन पिछले सात हजार वर्षों में इस पर इतनी साधनाएं और मंत्र अनुष्ठान हुए हैं कि यदि सटीक तरीके से इसे बनाया जाये तो यह सुख और समृद्धि का प्रतीक बन जाता है। विशेष रूप से स्वास्तिक सगाई-विवाह में देरी, घर में मानसिक तनाव, बुरी आदतें और घर में बरकत नहीं होना जैसी समस्याओं के निराकरण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। इनके अतिरिक्त भी घर या व्यावसायिक स्थान पर स्वास्तिक का होना अनेक प्रकार की समस्याओं के निराकरण के लिए रामबाण है।

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क्या है स्वस्तिक शब्द का मूल भावार्थ

भारतीय संस्कृति विश्व कल्याण की धारणा पर आधारित है। इसलिए इसके प्रत्येक कार्य में धर्म और आध्यात्मिकता का विशेष महत्व है और जनकल्याण सर्वोपरि है। हमारे ऋषि-मुनियों ने स्वास्तिक की रचना भी लोक कल्याण की अवधारणा पर ही की है। यदि हम स्वास्तिक शब्द की गहराई में जायेंगे तो पायेंगे कि इस शब्द का बहुत गहरा अर्थ है और यह मानव जीवन की समृद्धि से जुड़ा हुआ है। मूल रूप से स्वास्तिक के शाब्दिक अर्थ के तौर पर देखें तो यह एक संस्कृत का शब्द है जो कि दो शब्दों के मेल से बना है। माना जाता है सु और अस्ति शब्द की संधि से स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति हुई है। यहां सु का अर्थ शुभ और कल्याणकारी और अस्ति का भावार्थ है ग्रहण करना या होना। इस प्रकार से व्याख्या के तौर पर हम कह सकते हैं कि स्वास्तिक शब्द का भावार्थ शुभ और कल्याण को धारण करना है।

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स्वास्तिक को कहां और कैसे बनाएं

स्वास्तिक में किसी भी स्थान की नकारात्मक उर्जा को नष्ट करने की असीम क्षमता होती है। लेकिन यहां यह ध्यान रखने की बात है कि स्वास्तिक के अंकन में स्थान और मुहूर्त का बड़ा महत्व है। पहले तो यह निश्चित करें कि घर, फैक्ट्री, दुकान, बिजनेस प्लेस या ऑफिस में अंकन करने का स्थान कौन सा है। क्योंकि अंकन के स्थान का निर्धारण हमेशा हमारी समस्या के अनुसार होना चाहिए। अर्थात जिस समस्या के निवारण के लिए हम स्वास्तिक का अंकन कर रहे हैं उसके अनुसार ही स्थान का चयन होगा। इसके बाद अंकन का मुहूर्त देखना चाहिए। कुछेक विशेष मुहूर्तों में ही स्वास्तिक का प्रभाव होता है। हालांकि आप बिना मुहूर्त के भी स्वास्तिक का अंकन कर सकते हैं लेकिन उस स्थिति में उसका प्रभाव कम होगा। इसके बाद तीसरे चरण में अंकन की स्याही महत्वपूर्ण है। इसके लिए यह देखना चाहिए कि घर में वास्तु के आधार पर या घर स्वामी की जन्म कुंडली के ग्रहों के आधार पर कौन सा और किस रंग के पदार्थ से स्वास्तिक का अंकन होना चाहिए। आमतौर पर अष्टगंध, हल्दी, चंदन, कुंकुम या फिर सिंदूर से स्वास्तिक का अंकन किया जाता है। कुछ तांत्रिक प्रयोगों में काली स्याही का प्रयोग भी होता है। लेकिन यह सांसारिक कार्यों या अनुष्ठानों में प्रयोग नहीं होना चाहिए।

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स्वास्तिक बना कर दूर करें मुख्य द्वार का वास्तु दोष

किसी भी परिसर में मुख्य द्वार में वास्तु दोष होना खतरनाक हो सकता है। लेकिन जिस प्रकार से आंवला हजार रोगों की दवा है उसी तरह से स्वास्तिक भी हजारों दोषों को दूर करने की क्षमता रखता है। स्वस्तिक एक ऐसा आध्यात्मिक चिह्न है जो स्वयं में अद्भुत शक्तियां समाहित किए हुए है। जिस प्रकार से हम इसे उकेरते है उसी भाव से यह हमें परिणाम देता है। इसलिए यदि आपके घर या व्यावसायिक परिसर का मुख्य द्वार वास्तु के अनुसार नहीं हो तो उसके दोनों तरफ स्वास्तिक बना देने से कुछ हद तक मुख्य द्वार का वास्तु दोष नष्ट हो जाता है। इसके लिए हल्दी, चंदन या कुमकुम का उपयोग करना चाहिए। स्वास्तिक का आकार लगभग 5 से 7 इंच का रखें और किसी शुभ दिन में इसका अंकन करें।

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स्वास्तिक के प्रयोग की कुछ जरूरी जानकारी

1 – यदि कोई दूसरा शुभ मुहूर्त नहीं मिले तो स्वस्तिक को गुरुवार या शुक्रवार को उकेरना चाहिए।
2 – स्वस्तिक को हमेशा अनामिका अंगुली से बनाया जाना चाहिए।
3 – विशेष अवसरों के अतिरिक्त स्वस्तिक को हमेशा जमीन से 3 फीट से अधिक ऊंचाई पर होना चाहिए।
4 – यदि रंगों के प्रयोग से स्वस्तिक निर्मित करना हो तो लाल रंग का अधिकतम इस्तेमाल होना चाहिए।
5 – यदि आप बिना किसी उद्देश्य के सजावट के लिए स्वास्तिक बनाना चाहते हैं तो पीला और केसरिया रंग भी काम में ले सकते हैं।
6 – मांगलिक अवसरों पर काले रंग का प्रयोग स्वास्तिक बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

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