Tulsi Vivah 2024: वास्तु और ज्योतिष के अनुसार किसी भी घर में तीन पौधे होने जरूरी है। एक है आंवले का पेड़ या पौधा जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। दूसरा है केले का पौधा जो कि धन और समृद्धि को आकर्षित करता है। तीसरा पौधा है तुलसी को जो कि घर में शान्ति और सौहार्द के वातावरण का निर्माण करता है। इसलिए लगभग सभी सनातन धर्मी के घर में तुलसी का पौधा अवश्यमेव होता है। तुलसी को न केवल पवित्र बल्कि आरोग्य कारक भी समझा जाता है।
जहां तुलसी की पूजा, वहां श्रीलक्ष्मी का वास
माना जाता है कि यदि प्रतिदिन दो पत्ते तुलसी के सेवन किये जाएं तो व्यक्ति अनेक तरह के रोगों से बचा रहता है। मान्यताओं के अनुसार सभी मांगलिक कार्यों में तुलसीदल अनिवार्य है। घर के वातावरण को सुरम्य बनाने के लिए प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना आरोग्यदायक है। हालांकि रविवार के दिन तुलसी के पत्तों को तोड़ना, तुलसी के पौधे को लगाना या उसमें पानी देना सभी वर्जित कहे जाते हैं।
चूंकि श्रीलक्ष्मी और तुलसी का सम्बन्ध भगवान श्रीविष्णु से है इसलिए यह मान्यता है कि जिस घर में नियमित तुलसी की पूजा होती है। वहां अवश्य ही श्रीलक्ष्मी का वास होता है। कार्तिक के शुभ महीने में श्री विष्णु का पूजन तुलसी दल से करने का खास माहात्म्य बताया गया है। इसलिए धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक माह में तुलसी का विवाह संपन्न करने पर कन्यादान करने जैसा पुण्य ही प्राप्त होता है।
तुलसी का पौराणिक वृतांत
पुराणों में उल्लेख है कि राक्षस समाज में उत्पन्न एक वृंदा नामक महिला भगवान श्री विष्णु की अटूट भक्तिनी थी। उसका पति राक्षस राज जलंधर देवताओं से शत्रुता रखता था। एक बार जलंधर और देवताओं के मध्य युद्ध हुआ। वृंदा न केवल भगवान श्री विष्णु में अगाध भक्ति भाव रखती थी बल्कि वह एक सती और पतिव्रता स्त्री भी थी। जब जलंधर युद्ध पर गये तो उसने प्रण लिया कि जब तक जलंधर की विजय नहीं हो जाती तब तक वह अनुष्ठान करती रहेगी। सती का ऐसा प्रभाव हुआ कि देवता युद्ध में जलंधर का परास्त नहीं कर पाये। जब उन्हें कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखा तो वे श्री विष्णु के पास सहयोग की याचना की।
देवताओं की याचना से द्रवित श्री विष्णु ने जलंधर राक्षस का रूप धारण किया और वृंदा के आवास पर पहुंचे। वृंदा ने उन्हें ही पति समझ लिया और अपना अनुष्ठान संपन्न कर दिया। लेकिन वृंदा का वास्तविकता का अनुमान नहीं था। लेकिन जैसे ही वृंदा का संकल्प नष्ट हुआ वैसे ही जलंधर को देवताओं ने युद्ध में हरा कर उसका सिर काट कर वृंदा के महल में गिरा दिया। इस पर कुपित वृंदा ने श्री विष्णु श्राप देकर पत्थर का बना दिया। इस पर देवताओं में हाहाकार मच गया। देवताओं करूण प्रार्थना के उपरान्त वृंदा अपना श्राप वापस ले लिया। वृंदा इसके बाद अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं।
जब दाह की ठंडी हुई तो उनमें से एक पौधा उत्पन्न हुआ तब भगवान श्री विष्णु उस पौधे का नामकरण तुलसी किया। और यह भी वरदान दिया कि इस पौधे का हर घर में पूजा जाएगा और मैं स्वयं शालिग्राम पत्थर के रूप में तुलसी के साथ ही पूजा जाउंगा। श्री विष्णु ने कहा कि शुभ कार्य में मेरी पूजा से पूर्व तुलसी जी को भोग लगेगा। इस घटना के उपरान्त से ही तुलसी पूजा होने लगी। सर्वविदित है कि कार्तिक मास में तुलसी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री विष्णु के शालिग्राम रूप और माता तुलसी का विवाह संपन्न किया जाता है।
कब है तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त?
Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह के लिए मुहूर्त कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को है। तदनुसार अंग्रेजी दिनांक 12 नवंबर 2024, मंगलवार को है। एकादशी तिथि दोपहर बाद 4 बजकर 5 मिनट तक रहेगी। देश की राजधानी दिल्ली में तुलसी विवाह के लिए अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा।
Astrologer Satyanarayan Jangid
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