राहु: वह असुर जिसने कर लिया था अमृत पान, जानें क्या राहु हमेशा बुरा फल देता है - Punjab Kesari
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राहु: वह असुर जिसने कर लिया था अमृत पान, जानें क्या राहु हमेशा बुरा फल देता है

राहु का अमृत पान: क्या हमेशा देता है बुरा फल?

राहु एक छाया ग्रह है जिसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। स्वर्भानु नामक दैत्य ने अमृत पान कर लिया, जिससे उसका सिर राहु और धड़ केतु बन गया। राहु ग्रहण के रूप में सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसित करता है। यह राजनीति, फिल्म उद्योग, और अंधेरे से जुड़े कार्यों में विशेष भूमिका निभाता है।

राहु

क्या है राहु की शान्ति के 3 चमत्कारी उपाय

क्या आप जानते हैं कि राहु की उत्पत्ति में समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। यह कहानी बहुत दिलचस्प है। सभी को इस बारे में परिचित होना चाहिए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन आवश्यक था। लेकिन यह करना केवल देवताओं के क्षमता से बाहर था। समुद्र मंथन अपने आप में एक ऐसी प्रक्रिया थी जो कि असुरों अर्थात राक्षसों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। इसलिए देवताओं और असुरों ने मिल कर समुद्र मंथन करना तय किया। शर्त के अनुसार अमृत पान करने का अवसर पहले देवताओं को मिलना था। तय प्रक्रिया के अनुसार समुद्र मंथन किया गया। समुद्र मंथन के दौरान कुल 14 वस्तुओं की प्राप्ति हुई जिसमें अंत में अमृत था। लेकिन अमृत प्राप्ति के लिए देवों और दानवों में युद्ध शुरू हो गया। भगवान श्री विष्णु ने बीच बचाव करते हुए अमृत का बराबर बंटवारा करने पर देवों और राक्षसों को राजी कर लिया। देव और दानवों की अलग-अलग कतारें लग गईं। तय मानकों के अनुसार देवों को अमृत पान कराया जाने लगा। दानवों की कतार में बैठा स्वर्भानु नामक दैत्य बहुत बुद्धिमान और चालाक था। उसने अनुभव किया कि अमृत का पान जिस तरह से देवताओं को करवाया जा रहा है उस तरह से तो दैत्यों के लिए कुछ बचेगा ही नहीं। उसने अपना स्वरूप बदल कर देवताओं की तरह कर लिया और देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया।

सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण

क्यों लगता है सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण

पुराणों के अनुसार स्वर्भानु दैत्य भेष बदल कर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया। लेकिन दुर्भाग्य से सूर्य और चन्द्र देव ने स्वर्भानु को पहचान लिया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और स्वर्भानु ने अमृत पान कर लिया था। सूर्य और चन्द्र देव दोनों ने इस संबंध में भगवान श्री विष्णु को अवगत करवाया। अपने वचन पर स्थापित नहीं रहने के दंड के तौर पर क्रौधित होकर भगवान श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन अमृत पान करने के कारण वह मरा नहीं। उसका रूप परिर्वित हो गया। सिर भी जीवित रहा और धड़ भी जीवित रहा। तब से स्वर्भानु का सिर राहु है और उसका धड़ केतु है। मान्यता है कि इस घटनाक्रम से नाराज होकर स्वर्भानु ने प्रण लिया कि वह समय-समय पर सूर्य और चन्द्रमा दोनों को ग्रसित करेगा। मान्यता है कि इसी कारण से सूर्य और चन्द्र ग्रहण की घटनाएं होती हैं।

राहु की प्रकृति

क्या है राहु की प्रकृति

स्थूल रूप से राहु एक छाया ग्रह है। इसके पास धड़ नहीं है। इसलिए यह चीजों को देख तो सकता है, अनुभव कर सकता है लेकिन भोग नहीं सकता है। इसलिए इसमें नष्ट करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। लेकिन एक पाप ग्रह होने के बावजूद राहु राजनीति में विशेष पद दिलाता है। यदि राहु नकारात्मक परिणाम दे रहा है तो यह बहुत सामान्य उपायों से ही अपने फलित को बदल कर सकारात्मक फल देने में सक्षम हो जाता है। राहु की महादशा या अंतर्दशा में विवाह जैसे शुभ कार्यों किसी तरह की बाधा नहीं आती है। आकस्मिक धन प्राप्ति के योग में राहु को विशेष महत्व प्राप्त है। धन या पंचम स्थान पर राहु की दृष्टि से ही आकस्मिक धन प्राप्ति के योग अपना फलित दे पाते हैं। राहु जिस राशि में संस्थित होता है, उसे अपने पापत्व से दूषित कर देता है। यदि राहु अधिष्ठ राशि का स्वामी सशक्त न हो तो स्वयं भी पापी हो जाता है। कुंडली में तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में पड़ा हुआ राहु अक्सर शुभ फल देता है। राहु और केतु की कोई निश्चित राशियां नहीं है। ऐसा माना जाता है कि ये जिस राशि में होते हैं उसके स्वामी के तद्नुसार व्यवहार करते हैं। इसलिए भावों और राशियों के आधार पर राहु का फल कहना चाहिए।

राहु

किन वस्तुओं या बिजनेस का कारक है राहु

सर्वमान्य तौर पर राहु एक छाया ग्रह है और अंधेरे का प्रतिनिधि ग्रह है। यह फिल्म उद्योग, राजनीति, जानवरों को खरीदना-बेचना, प्लास्टिक, हड्डियां, ज्योतिष, अचानक लाभ देने वाले बिजनेस जैसे शेयर, सट्टा, मादक पदार्थ जैसे चरस, अफीम, शराब आदि का कार्य, कोई भी कानूनी तौर पर प्रतिबंधित कार्य, जहर और एंटीबायोटिक दवाइयां आदि का कार्य या बिजनेस राहु के अधीन आते हैं। यदि कुंडली में राहु शुभ स्थिति में हो तो वह राजनीति में भी अच्छी सफलता दिला सकता है। इसलिए फलित ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों की जन्म कुंडली में दसवें घर का संबंध राहु से होता हो और राहु बलवान हो तो वह राजनीति में उच्च पद दिलाता है। ऐसे व्यक्ति की पहुंच ऊपर तक होती है। अकेला लग्न में राहु व्यक्ति के जीवन में अचानक होने वाली घटनाओं की पुनरावृत्ति करवाता है। लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं है कि राहु शुभ हो या फिर अशुभ हो। कोई भी ग्रह अपने प्राकृतिक गुण को नहीं खोता है। लेकिन वह कुंडली की राशियों और ग्रहों के आधार पर शुभ या अशुभ बन जाता है। शनि और राहु जैसे पाप ग्रह भी शुभ होकर बहुत उन्नति प्रदान कर सकते हैं उसी प्रकार से बृहस्पति या शुक्र जैसे शुभ ग्रह भी यदि पीड़ित हों तो किसी पाप ग्रह की भांति व्यवहार करते हैं।

चमत्कारी उपाय

राहु की शान्ति के 3 चमत्कारी उपाय

जब जन्म कुंडली में राहु शुभ स्थिति में हो तो राहु की शान्ति करवाने की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं होती है। कुछ मामलों में राहु पाप ग्रहों से युति या अशुभ भावों में जाने से अशुभ फल देता है। इस स्थिति में राहु की शान्ति के उपाय करने चाहिए। हालांकि राहु की शान्ति के बहुतेरे उपाय हैं। लेकिन कुछ सटीक और तुरन्त फल देने वाले उपायों के बारे में यहां बताना पसंद करूंगा।

1 – जब राहु की शान्ति के सात्विक उपायों की बात की जाए तो श्री सरस्वती स्तोत्र का जाप, राहु की शान्ति के लिए रामबाण है।

2 – राहु के तांत्रिक मंत्रों के 18000 जाप, दशांश अर्थात् 1800 मंत्रों से हवन, राहु की पूजा और अंत में राहु के दान से भी राहु की शान्ति होती है। लेकिन यह अनुष्ठान हमेशा किसी सुयोग्य विद्वान से संपन्न करवाना चाहिए।

3 – किसी भी बुधवार, शुक्रवार या शनिवार को संध्या या उसके बाद रात्रि के समय अपनी लम्बाई के बराबर नीला वस्त्र, उड़द दाल, छोटी तलवार, भूरे रंग का कंबल, सात प्रकार के धान और गोमेद पत्थर का दान करें। काफी हद तक इस दान से राहु की शान्ति होकर सुख और समृद्धि की पुनः प्राप्ति होती है।

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