पंच धातु की रिंग से बढ़ेगा आपका आत्मविश्वास, जानें इसकी विशेषताएं - Punjab Kesari
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पंच धातु की रिंग से बढ़ेगा आपका आत्मविश्वास, जानें इसकी विशेषताएं

जानें पंच धातु की रिंग पहनने के फायदे और विशेषताएं

हाथों की अंगुलियों में रिंग धारण करने का फैशन सदियों से चला आ रहा है। हालांकि इसका चलन हाथों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए हुआ होगा। लेकिन कालांतर में इसके उपयोग का दायरा बढ़ता गया। वर्तमान परिदृश्य आपके सामने है और वर्तमान में रिंग पहनने के अनेक कारण हो सकते हैं। वैसे अंगुली में मुद्रिका धारण करने के दो प्रमुख कारण दृष्टिगोचर होते हैं। एक तो यह कि हम अंगुलियों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए रिंग पहनते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी खास उद्देश्य के लिए अंगुली में रिंग पहनी जाए। रिंग पहनने का यह खास उद्देश्य किसी देवता या ग्रह की प्रबलता को बढ़ाने या फिर उसकी प्रसन्नता के लिए भी हो सकता है।

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विभिन्न धातुओं का होता है इस्तेमाल

भारतीय फलित ज्योतिष और पश्चिम के अंक ज्योतिष में ग्रहों की फल देने की क्षमता को बढ़ाने के लिए ग्रहों से संबंधित रंगों के प्राकृतिक पत्थर धारण किये जाते हैं और किसी भी छोटे पत्थर को धारण करने के लिए अंगूठी सबसे सरल और सहज माध्यम है। अंगूठी को बनाने के लिए भिन्न प्रकार के मैटल का प्रयोग किया जाता है। जैसे सोना, चांदी या फिर तांबा, या फिर कोई और धातु। वर्तमान में लगभग आठ प्रकार की ज्ञात धातुएं पृथ्वी पर उपलब्ध हैं। प्राचीन काल से ही सभी धातुएं पृथ्वी के लगभग सभी भूभागों में भिन्न प्रकार से उपयोग में ली जाती रही हैं। भारत में धातुओं के मिश्रण का विज्ञान हजारों वर्षों से प्रचलन में है। प्राचीनकाल में अष्टधातु के मिश्रण से हिन्दू और जैन प्रतिमाओं के निर्माण किया जाता था। ये आठ धातु हैं:- पारा, सोना, जस्ता, चाँदी, टिन, तांबा, सीसा और लोहा। नीचे दिया गया यह श्लोक देखें। इसमें आठ प्रकार की धातुओं के बारे में बताया है। इस श्लोक का भावार्थ है कि ये आठ प्रकार की धातुएं वर्तमान में प्रचलन में हैं।

स्वर्ण रूप्यं ताम्रं च रंग यशदमेव च।

शीसं लौहं रसश्चेति धातवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः।

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पंच धातु की मुद्रिका या रिंग

हालांकि प्राचीन काल से ही आठ धातुएं प्रचलन में है। लेकिन सभी धातुओं को एक निश्चित मात्रा में लेकर कोई अंगूठी बनाना आसान काम नहीं है। लेकिन यदि पांच धातुओं से अंगूठी बनाई जाए तो वह आसानी से बन सकती है। हालांकि प्राचीन काल में देवताओं की मूर्तियों का निर्माण अष्टधातु से किया जाता था। वर्तमान में यह मूर्तियां बहुत से मंदिरों में उपलब्ध है। माना जाता है कि किसी भी मूर्ति, श्रीयंत्र, अंगूठी, पेडेन्ट आदि को यदि अष्ट धातु से बनाया जाए तो वह किसी भी ग्रहण आदि प्राकृतिक घटना से दूषित नहीं होती है। अर्थात् उस मूर्ति को पुनः अभिमंत्रित या प्राण प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन अष्ट धातु की तुलना में यदि हम पांच प्रमुख धातुओं का प्रयोग करें तो भी वह आकृति काफी प्रभावशाली फल देने में सक्षम हो सकती है। वैसे भी अष्ट धातु का नाम अधिक लोकप्रिय है। आमतौर पर यह आसानी से उपलब्ध नहीं होती है। इसलिए मैं पंच धातु की अंगुठी या छल्ले की अनुशंसा करूंगा। वैसे भी वर्तमान युग में सभी आठ धातुओं का मिश्रण करके अंगूठी का निर्माण करना साधारण जन के लिए संभव नहीं हो पाता है, इसलिए मैं अपने सम्मानित पाठकों को पंच धातु की मुद्रिका धारण करने की सलाह ही देता हूं। पंच धातु भी अष्ट धातु जितना ही काम करती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इन धातुओं का वजन हमेशा बराबर लेना चाहिए। लोहा सस्ता है इसलिए इसकी मात्रा को बढ़ाईए मत और स्वर्ण मंहगा है तो इसकी मात्रा को कम मत करें। सभी पांच धातुएं समान वजन में लेनी चाहिए। पंच धातओं में आप सोना, जस्ता, चांदी, तांबा और लोहा ले सकते हैं।

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क्या हैं पंचधातु की रिंग के ज्योतिषीय लाभ

– मैंने जो अब तक अनुभव किया है उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि यदि आप पंच धातु या फिर अष्ट धातु की रिंग पहनते हैं तो निश्चित रूप से आप के अंदर आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

– यदि आप अपने जीवन में कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पा रहे हैं और आपका ध्यान एक विषय पर केन्द्रित नहीं है तो भी आपको अष्ट धातु या पंच धातु की रिंग जरूर पहन लेनी चाहिए। इससे आप भटकाव से बचे रहेंगे और जीवन में एक ही फिल्ड में अपना बेस्ट दे पाने में सफल हो सकेंगे।

– यदि आप यह समझते हैं कि भाग्य आपका साथ नहीं दे रहा है तो आपको पंच धातु की रिंग पहननी चाहिए। इससे भाग्य वृद्धि होगी और चीजें सकारात्मक तरीके से आपके पक्ष में होने लगेंगी। और नकारात्मकता से छुटकारा मिलेगा।

– यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह का लग्नेश या चन्द्र लग्न से कोई संबंध बन रहा है तो आपको इस रिंक को धारण करने से शारीरिक लाभ भी होंगे। आप स्वयं को अधिक फिट और मानसिक रूप से परिपक्व अनुभव करेंगे।

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पंचधातु की रिंग से बढ़ती है बुध की प्रबलता

बुध को फलित ज्योतिष में कुमार की संज्ञा प्राप्त है। वाकपटुता और समय पर सटीक निर्णय क्षमता के लिए जन्म कुंडली में बुध का प्रबल होना जरूरी है। आमतौर पर देखा जाता है कि कुछ लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है। कुछ मामलों में यह भी देखा जाता है कि हम निश्चित समय पर अपनी बात नहीं कह पाते हैं। बाद में दिमाग लगाते हैं कि हमें उस समय यह बात करनी चाहिए थी, या ऐसा कहना चाहिए था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इन सब समस्याओं के निवारण और बुध की प्रबलता के लिए पंच धातु की मुद्रिका या कड़ा रामबाण का काम करता है।

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