भगवान शिव जल्द प्रसन्न होने वाले देव है। माना जाता है कि साधारण से ध्यान और मनन से ही शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। शिवरात्रि के दिन शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी अवसर से कम नहीं है। वैसे तो एक विक्रम संवत वर्ष में कुल 12 शिवरात्रियां आती हैं। विक्रम संवत के प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि होती है। ऐसे में भगवान शिव के भक्त प्रत्येक शिवरात्रि को ही व्रत रखकर अपने आराध्य की कृपा प्राप्त करने का उद्यम करते हैं। लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
क्यो खास होती है महाशिवरात्रि?
महाशिवरात्रि सर्वाधिक पावन समझी गई है और इसे एक त्योहार के तौर पर आयोज्य किया जाता है। महाशिवरात्रि समस्त भारत, नेपाल और बांग्लादेश सहित सभी उन देशों में हर्षोल्लास से मनाई जाती है जहां-जहां शिव भक्त हैं। पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि को ही अग्निलिंग से इस सृष्टि का आरम्भ हुआ था। पुराणों के अनुसार इस दिन शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन शिव भक्त पूरे उत्साह से व्रत रखते हैं और शिव-गौरी की पूजा करते हैं। भारत के कश्मीर में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है।
क्या कहती हैं पौराणिक कथाएं?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और गौरी का विवाह संपन्न हुआ था। हालांकि शिवरात्रि के मनाए जाने के पुराणों में और भी बहुत सी कथाएं प्रचलन में है। लेकिन आमतौर पर शिव-गौरी के विवाह के उपलक्ष्य में इस त्योहार को मनाए जाने की मान्यता सबसे अधिक प्रचलन में है। जब कि वास्तव में त्योहार के पीछे बहुत से और कारण भी हमारे वैदिक और पौराणिक शास्त्रों में वर्णित हैं। इसलिए इसे केवल भगवान शिव के विवाह मात्र से ही जोड़ना पूरी तरह से शास्त्रीय नहीं है। हालांकि इस त्योहार को मनाए जाने का यह भी एक प्रमुख कारण है लेकिन दूसरी भी बहुत सी कथाएं महाशिवरात्रि से जुड़ी हुई हैं जिनमें से एक समुद्र मंथन की कथा भी है।
जब भगवान शिव ने किया विषपान
समुद्र मंथन देवों और दानवों द्वारा एक सम्मिलित उद्योग था जिसका प्रमुख उद्देश्य अमृत प्राप्ति था। जब समुद्र मंथन हुआ तो सर्वप्रथम हलाहल नामक विष निकला। हलाहल विष इतना तीव्र था कि उसकी गंध से ही देवताओं और दानवों के शरीर जलने लगे। अतः सभी ने मिलकर शिव से याचना की। तब शिव ने हलाहल को अपनी हथेली पर रखा और उसका पान कर लिया। परन्तु किसी अनहोनी की आशंका के कारण माता पार्वती ने विष को शिव के कण्ठ में रोक लिया। जिसके कारण कण्ठ नीला पड़ गया। चूंकि हलाहल विष के प्रभाव को नष्ट करने के लिए भगवान शिव रात्रि भर जागते रहे और देवताओं ने उनकी भक्ति में लीन होकर रात्रि पर्यन्त आनन्दित होकर संगीत और नृत्य के द्वारा शिव को प्रसन्न करने की कोशिश की। प्रातः विष का प्रभाव नष्ट हो गया और शिव ने सभी देवताओं को अपने आशीर्वाद से शोभित किया।
क्या है समुद्र मंथन की कथा ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह घटना फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुई थी। इसलिए इस दिन को शिव को प्रसन्न करने का सौभाग्य सभी भक्तजन करते हैं और इस दिन निराहार रह कर अपने आराध्य को प्रसन्न करने की चेष्टा करते हैं। यद्यपि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के उत्सव के संबंध में पुराणों और शास्त्रों में और भी बहुत से कथाएं और धारणाएं प्रचलन में हैं। लेकिन विषपान और शिव-गौरी के विवाह की घटना जनमानस में अधिक लोकप्रिय है। हलाहल विष के बाद समुद्र मंथन में अमृत की प्राप्ति से पूर्व 12 दूसरे रत्न भी निकले। कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, रंभा, देवी लक्ष्मी, वारुणी, चंद्रमा, पारिजात पुष्प-वृक्ष, पांचजन्य शंख, धन्वन्तरि और अंत में अमृत की प्राप्ति हुई।
कब है महाशिवरात्रि ?
अंग्रेजी दिनांक 26 फरवरी 2025 को फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। त्रयोदशी तिथि प्रातः 11 बजकर 6 मिनट तक रहेगी। उसके बाद चतुर्दशी तिथि का आरम्भ हो जायेगा। चतुर्दशी तिथि को ही प्रति वर्ष महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। शिव की पूजा प्रदोष काल में करने का विधान है। हालांकि 26 फरवरी को 2025 को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि है लेकिन प्रदोष काल में चतुर्दशी तिथि होने के कारण व्रत को 26 फरवरी को ही रखा जाना शास्त्रोक्त है।
कैसे करें शिव को प्रसन्न ?
महाशिवरात्रि के लिए प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शिव मंदिर में या घर में ही शिव के समक्ष व्रत का संकल्प लें। व्रत के कई तरीके हैं। किसी व्रत में एक समय भोजन किया जाता है। किसी में केवल फलाहार किया जाता है और किसी में शिव की पूजा से पूर्व निर्जल रह कर भी संकल्प लिया जाता है। आप अपने स्वास्थ्य के अनुसार संकल्प लें। शिव बहुत ही कृपालु हैं, इसलिए मानसिक श्रद्धा से व्रत रखना आवश्यक है। भगवान शिव को भांग, धतूरा, बेलपत्र, जायफल आदि प्रिय है। इसलिए इनको पूजा में अवश्य शामिल करें। यदि उपरोक्त चीजें उपलब्ध नहीं हो तो मदार के पुष्प से भी शिव की पूजा की जा सकती है।
क्या हैं शिवरात्रि व्रत और पूजा के लाभ
शिव को एक आदर्श पति के तौर पर माना जाता है। इसलिए कुंवारी कन्याओं को अवश्य ही महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिए। वैसे भी सात सोमवार तक लगातार शिव की पूजा और उपासना करने से सगाई-विवाह के संबंध में आ रही अड़चनों का निवारण होता है। जिन विवाहित जोड़ों को वैवाहिक जीवन में कलह, विचार वैमनस्य जैसी परेशानी हो तो भी इस व्रत से उसका निवारण हो जाता है। इसके लिए सोमवार को 2 मुखी रूद्राक्ष गले में धारण करना चाहिए। धन संबंधी समस्याओं के लिए भी शिव की उपासना और पूजा से लाभ होता है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी से मुक्ति के लिए शिव के महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जाप करने से समस्या से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।