Holi 2025: कब मनाया जाएगा रंगों का त्योहार होली, जानें सब कुछ - Punjab Kesari
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Holi 2025: कब मनाया जाएगा रंगों का त्योहार होली, जानें सब कुछ

होलिका दहन से पहले जानें होली के त्योहार की पौराणिक कथाएं

व्यक्ति अपने बहुत ही व्यस्त जीवन शैली में ऐसे पल बहुत कम निकाल पाता है। जब कि वह सब कुछ भूल कर अपनी खुशियों के लिए कुछ समय निकाल सके। भारत के ऋषि-मुनियों ने इस बात का बहुत अच्छे से अनुभव किया और पूरे वर्ष भर की थकान मिटाने के लिए फाल्गुन मास की व्यवस्था की। हालांकि वर्तमान में काफी कुछ बदल गया है। लेकिन हमारे बुजुर्ग कहा करते हैं कि फाल्गुन मास में पूरे 30 दिनों तक लोग हंसी-मजाक और ठिठोली से अपना मनोरंजन करते थे। पश्चिम जगत में 1 अप्रैल को मूर्ख दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत में फाल्गुन मास में हंसी-मजाक जरूर किया जाता है लेकिन इसके साथ होलिका दहन की धार्मिकता से भी यह माह बहुत घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है।

होलिका दहन से 8 दिन पूर्व ही होलिका दहन की तैयारी आरम्भ हो जाती है। इन 8 दिनों में सभी मांगलिक कामों को करने की धार्मिक मान्यता नहीं है। सभी तरह के मांगलिक कार्यों में इन दिनों में रोक रहती है। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के बाद दूसरे दिन रंगों से लोग एक-दूसरे को आत्मीयता से रंग लगाते हैं, जो कि होली के त्योहार के समापन के एक उत्सव के तौर पर भी देखा जा सकता है। जहां तक मुझे जानकारी है इस तरह का रंगों का त्योहार किसी और देश में नहीं है। पूरे विश्व में इस तरह का यह अकेला त्योहार है। हालांकि रंगों का यह त्यौहार वर्तमान में अपने स्वरूप में बदलाव के बाद लगभग 2 दिन का उत्सव रह गया है। पहले दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन एक दूसरे पर रंग लगाकर सभी को होली की शुभकामनाएं दी जाती हैं। वास्तव में यह त्योहार अधर्म पर धर्म की विजय के उपलक्ष्य मनाया जाता है।

क्यों मनाई जाती है होली

क्यों मनाई जाती है होली?

वैसे तो पुराणों में होली के त्योहार के आयोजन के संबंध में बहुत सी कथाएं उपलब्ध हैं। लेकिन सतयुग की भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई कथा जनमानस में सबसे लोकप्रिय है। यह कथा सतयुग से जुड़ी हुई है। सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था जिसे कई तरह के वरदान मिले हुए थे। जिसके कारण उसे अहंकार हो गया कि वह तो अजेय है और अमर है उसे कोई मार नहीं सकता है। इस अहंकार के कारण वह निरंकुश और निर्दयी हो गया। उसने अपने नगर में यह घोषणा करवा दी कि वही वास्तविक भगवान है और उसी की पूजा होनी चाहिए। उसके डर से प्रजा उसकी पूजा करने लगी लेकिन उसका स्वयं का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को श्री विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक कष्ट और यातनाएं दीं। जब किसी भी तरह से बालक प्रहलाद अपनी भक्ति से विमुख नहीं हुए तो हिरण्यकश्यप ने अपनी समस्या पर अपनी बहन होलिका से बात की। कहा जाता है कि होलिका को वरदान के रूप में एक चादर मिली हुई थी जिसको ओढ़ कर बैठने से वह अग्नि से बची रह सकती थी। भाई-बहन ने योजना बनाई कि कि चादर के कारण होलिका तो बची रहेगी और प्रहलाद जलकर राख हो जायेगा।

भक्त की विजय का त्योहार है होलिका

भक्त की विजय का त्योहार है होलिका

योजना अनुसार होलिका ने बालक प्रहलाद को अपनी गोद में बैठा लिया और आग लगा दी गई। लेकिन भगवान श्री विष्णु की भक्ति के कारण आंधी चली और होलिका की चमत्कारी चादर हवा में उड़ गई और होलिका स्वयं जलकर नष्ट हो गई जबकि प्रहलाद सुरक्षित अग्नि से बाहर आ गए। इस घटना के बाद आज भी गोबर से होलिका का प्रतीक बनाकर जलाया जाता है। हालांकि होलिका दहन के संदर्भ में और भी बहुत सी कथाएं हैं लेकिन यह सबसे लोकप्रिय और व्याप्त है।

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विष्णु भगवान ने लिया था नरसिंह अवतार

भगवान श्री नरसिंह अवतार और होली उपरोक्त कथा भगवान श्री विष्णु ने नरसिंह के अवतार के उपरान्त पूर्ण होती है। इसलिए कुछ स्थानों पर भगवान नरसिंह की भी पूजा की जाती है। हिरण्यकश्यप का वध भगवान ने अपने नरसिंह अवतार के रूप में किया था। क्योंकि हिरण्यकश्यप को यह वरदान मिला हुआ था कि उसे कोई मनुष्य, देव या जानवर नहीं मार सकेगा। इसलिए भगवान ने उसे मारने के लिए मनुष्य और जानवर का सम्मिलित रूप प्रकट किया।

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ऐसे लोगों को करनी चाहिए नरसिंह भगवान की पूजा

जो लोग दिमागी रूप से परेशान है। मानसिक परेशानी ज्यादा रहती है। या जिन लोगों को लगता है कि उनमें डिसीजन पावर कम है और वे जो भी डिसिजन लेते हैं वह गलत हो जाता है, जिस कारण बाद में पछताना पड़ता है। उनको होली के दिन भगवान श्री नरसिंह की पूजा करनी चाहिए। वैसे जिन लोगों के घरों में कोई मानसिक रोगी हो उन्हें भी भगवान नरसिंह का चित्र अपने घर में जरूर स्थापित करना चाहिए।

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जैन धर्म में होली का महत्व

होली का त्यौहार हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता रखता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जैन धर्म में भी होली का त्यौहार मनाया जाता है। जैन धर्म में होली के त्यौहार को भगवान महावीर के जन्म से जोड़ा गया है। जैन धर्म के मुताबिक, भगवान महावीर चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जन्में थे इसलिए जैन धर्म के लोग होली के इस पावन त्यौहार को महावीर भगवान के जन्मदिन के तौर पर सेलिब्रेट करते हैं। इसके अलावा जैन धर्म के लोग होली के त्योहार को भगवान ऋषभदेव के मोक्ष से भी जोड़ते हैं और उनको याद करके भी यह त्यौहार मनाते हैं। होली पर जैन धर्म में बहुत से धार्मिक आयोजन किये जाते हैं।

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क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

विक्रम संवत् के अनुसार श्री फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का आरम्भ गुरुवार 13 मार्च 2025 को प्रातः 10 बजकर 36 मिनट से होगा। पूर्णिमा तिथि, विष्टि करण जिसे आम बोलचाल की भाषा में भद्रा भी कहते हैं, के साथ शुरू होगी। भद्रा का दोष रात्रि 11 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। चूंकि भद्रा में होलिका दहन शास्त्रोक्त नहीं है इसलिए भद्रा दोष के उपरान्त रात्रि 11 बजकर 28 मिनट के बाद होलिका दहन किया जाना चाहिए। रंगों से खेलने का आयोजन जिसे होली, छारंडी, फगुआ, धुलेंडी या धोल भी कहा जाता है वह 14 मार्च 2025, शुक्रवार को मनाया जाना चाहिए।

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