आज भी निजी अस्पतालों का महंगा इलाज भारत में एक बड़ी समस्या है। हर राज्य में एक ऐसा तबका मौजूद है जिसके लिए आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं किसी विलासिता से कम नहीं हैं। भारत की तमाम सरकारें निरंतर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर तो बना रही हैं, परंतु आज भी भारत का सरकारी स्वास्थ्य ढांचा हमारी पूरी आबादी का भार उठाने योग्य नहीं है। ऐसे में कई निजी अस्पतालों में गरीबों के इलाज का मुफ्त प्रावधान हमारे देश के लिए फायदेमंद हो सकता है। दरअसल, दिल्ली समेत पूरे देश में सरकार द्वारा कई निजी अस्पतालों को बाज़ार दर से कम कीमत पर जमीन मुहैया कराई जाती है। बदले में इन अस्पतालों को गरीबों के लिए 10 से 25 प्रतिशत बेड आरक्षित करने को बाध्य किया जाता है। लेकिन कई मौकों पर देखा गया है कि निजी अस्पताल सरकारी नियमों का उल्लंघन करते हैं। एक आंकड़े के अनुसार, कुल बेड्स में से सिर्फ 2 से 4 प्रतिशत बेड्स ही गरीबों के लिए आरक्षित किए जाते हैं। सिर्फ दिल्ली में ऐसे 62 अस्पताल हैं जो सरकार द्वारा दी गई जमीन पर बने हैं
1 रुपये में दी गई थी जमीन
दिल्ली के एक बहुत बड़े निजी अस्पताल को वर्ष 1988 में मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष की दर पर जमीन दी गई थी। बदले में अस्पताल को गरीबों के इलाज के लिए 200 बेड आरक्षित रखने के निर्देश दिए गए थे। मगर अस्पताल लगातार सरकार के निर्देशों का उल्लंघन करता रहा है। कई बार कोर्ट की फटकार लगने के बावजूद अस्पताल तय संख्या का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही आरक्षित करता रहा है। दिल्ली में कुल ऐसे 62 निजी अस्पताल हैं जो सरकार द्वारा दी गई जमीन पर बने हैं।
2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिए थे निर्देश
2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने शहर के दो बड़े निजी अस्पतालों को फटकार लगाते हुए 10 से 25 प्रतिशत बेड आरक्षित करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट का आदेश था कि दिल्ली प्रशासन द्वारा रियायती दरों पर मुहैया कराई गई जमीन पर बने अस्पतालों को अपने कुल बेड्स में से 10–25 प्रतिशत गरीबों के लिए आरक्षित रखने होंगे। पर कोर्ट के निर्देश के बाद भी एक बड़ी संख्या ऐसे निजी अस्पतालों की है जो आदेश का पालन नहीं करते हैं। दिल्ली में वर्तमान में कुल 62 ऐसे अस्पताल हैं जो सरकार द्वारा दी गई जमीनों पर बने हैं। इनमें से 54 अस्पताल दिल्ली विकास प्राधिकरण (डी.डी.ए.) की जमीन पर बने हुए हैं।
कमेटी का भी गठन हो चुका है
दिल्ली हाई कोर्ट ने अशोक अग्रवाल की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी को पूरी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में आरक्षित बेड्स की स्थिति का आकलन करने की जिम्मेदारी दी गई थी। जांच कमेटी ने पाया कि ज्यादातर अस्पताल सरकारी प्रावधानों का पालन नहीं कर रहे हैं। अगर कहीं पालन भी हो रहा है, तो कुल आरक्षित बेड्स की संख्या निर्धारित संख्या का मात्र 20 प्रतिशत है।
सरकार के पास राज्यवार डेटा नहीं
केंद्र सरकार के दो मंत्रियों ने संसद में पूछे गए सवालों के जवाब देते हुए कहा कि उनके पास सरकार द्वारा दी गई जमीनों का राज्यवार डेटा उपलब्ध नहीं है। 22 दिसंबर 2017 को अश्विनी चौबे ने और 27 जुलाई 2018 को अनुप्रिया पटेल ने इस प्रश्न का उत्तर दिया था। डेटा की कमी के कारण अस्पतालों को और छूट मिल जाती है। सभी राज्य और केंद्र सरकारों को इस विषय पर साझा विमर्श तलाशने की ज़रूरत है।