किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने बच्चों के मेटाबॉलिज़्म को प्रभावित करने वाले लिपिड और विकारों के बीच एक नया संबंध खोजा है। यह खोज लीवर की बीमारी सहित बीमारियों के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली प्रदान कर सकती है। वैज्ञानिकों ने एक नया रक्त परीक्षण विकसित किया है जो लिपिड का उपयोग करके उन बच्चों की पहचान करता है जो मोटापे से संबंधित समस्याओं, जैसे कि टाइप 2 मधुमेहऔर हृदय रोग के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। बता दें कि लिपिड को पारंपरिक रूप से शरीर में फैटी एसिड माना जाता है, या तो अच्छे या बुरे प्रकार के कोलेस्ट्रॉल या ट्राइग्लिसराइड्स, रक्तप्रवाह में पाए जाने वाले वसा जो मानव शरीर में सबसे आम हैं।
शोधकर्ताओं का प्रस्ताव है कि अस्पतालों में पहले से ही उपयोग में आने वाली रक्त प्लाज्मा परीक्षण मशीनें बच्चों में शुरुआती बीमारी के संकेतों को अधिक तेज़ी से पहचानने में चिकित्सा पेशेवरों की सहायता कर सकती हैं और उचित उपचार तक उनकी पहुँच को सुविधाजनक बना सकती हैं। निष्कर्ष इस आम धारणा को भी चुनौती देते हैं कि कोलेस्ट्रॉल बच्चों में मोटापे से संबंधित जटिलताओं का एक प्रमुख कारण है। वे नए लिपिड अणुओं की पहचान करते हैं जो रक्तचाप जैसे स्वास्थ्य जोखिमों में योगदान करते हैं लेकिन केवल बच्चे के वजन से संबंधित नहीं होते हैं।
रसायन विज्ञान से जुड़ी एक तकनीक का उपयोग करते हुए जिसे मास स्पेक्ट्रोमेट्री कहा जाता है, शरीर में मौजूद हजारों अलग-अलग लिपिड का अनुमान लगाता है, जिनमें से प्रत्येक का एक अलग कार्य होता है। टीम ने मोटापे से ग्रस्त 1,300 बच्चों का नियंत्रण नमूना लिया और उनके रक्त लिपिड का मूल्यांकन किया। इसके बाद, उनमें से 200 को एक साल के लिए होलबेक मॉडल पर रखा गया, जो मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए डेनमार्क में लोकप्रिय जीवनशैली हस्तक्षेप है। मोटापा फैटी लीवर रोग जैसी स्थितियों के लिए एक जोखिम कारक बना हुआ है, लेकिन टीम को उम्मीद है कि डॉक्टर इन मापों का उपयोग बच्चों के इलाज के लिए कर सकते हैं जब वे जोखिम में होते हैं और न कि अपने साथियों की तुलना में थोड़े बड़े होते हैं।