डायग्नोसिस : हाल ही में हुए एक शोध में पता चला है कि अस्पतालों में हर 14 में से एक मरीज की बीमारी गलत डायग्नोज होती है। यह अध्ययन बीएमजे क्वालिटी एंड सेफ्टी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जिसमें कहा गया है कि इन गलतियों को रोकने के लिए चिकित्सा क्षेत्र में नए दृष्टिकोणों को अपनाने की आवश्यकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इनमें से 85 प्रतिशत त्रुटियों को रोका जा सकता है।
Highlight :
- गलत डायग्नोसिस मरीजों की सेहत के लिए गंभीर चिंता का विषय
- चिकित्सा क्षेत्र में नए दृष्टिकोण और निगरानी सुधार की आवश्यकता
- आधुनिक तकनीक का उपयोग
गलत डायग्नोसिस मरीजों की सेहत के लिए गंभीर चिंता
शोध में यह भी बताया गया है कि गलत निदान आमतौर पर हार्ट फेलियर, एक्यूट किडनी फेलियर, सेप्सिस, निमोनिया, सांसों का रुकना, मानसिक स्थिति में बदलाव, पेट में दर्द, और हाइपोक्सिमिया (रक्त में ऑक्सीजन का निम्न स्तर) जैसी बीमारियों में होते हैं। अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि गलत डायग्नोसिस के उच्च जोखिम की श्रेणी में उन मामलों को रखा गया है जहां मरीज को भर्ती होने के 24 घंटों के बाद आईसीयू में स्थानांतरित किया गया। इसके अलावा, अस्पताल में भर्ती होने के 90 दिन के भीतर, मरीज की मौत या जटिल क्लीनिकल मसलों का सामना करने वाले मामलों को भी इस श्रेणी में रखा गया है।
अध्ययन में शामिल 160 मामलों की समीक्षा की गई, जिसमें 154 मरीजों का गलत डायग्नोसिस किया गया था। इनमें से 54 मामले ऐसे थे जहां मरीज को 24 घंटे के बाद आईसीयू में स्थानांतरित किया गया था। इसके अलावा, 90 दिन के भीतर 34 मरीजों की मौत हुई और 52 मामलों में जटिल क्लीनिकल समस्याएं उत्पन्न हुईं। कम जोखिम वाले मरीजों में निदान में गलती की संख्या 20 पाई गई। यह आंकड़ा दर्शाता है कि निदान में त्रुटि की समस्या कितनी गंभीर है, जो मरीजों की सेहत को खतरे में डाल सकती है। शोध में यह भी बताया गया है कि इन नुकसानों को मामूली, मध्यम, गंभीर और घातक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि त्रुटियों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण और वर्कफ्लो में एआई टूल को जोड़ने से निगरानी में सुधार किया जा सकता है। इससे समय पर हस्तक्षेप संभव होगा, जो गलत डायग्नोसिस से बचाने में सहायक होगा। इस अध्ययन के परिणाम स्पष्ट करते हैं कि चिकित्सा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है, खासकर निदान की प्रक्रिया में। यदि चिकित्सा प्रणाली में इन सुझाए गए बदलावों को लागू किया जाता है, तो मरीजों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए एक सकारात्मक बदलाव संभव है। इस दिशा में कदम उठाना न केवल चिकित्सकों के लिए बल्कि मरीजों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।