जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकान नहीं होता
-वसीम बरेलवी
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
-फ़िराक़ गोरखपुरी
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
-मीर तक़ी मीर
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ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है
-बशीर बद्र
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो
-निज़ाम रामपुरी
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
-चराग़ हसन हसरत
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चांद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
-इब्न-ए-इंशा
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है
-निदा फ़ाज़ली
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