वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए
-अमीर मीनाई
सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं
-अल्लामा इक़बाल
किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमान न कर सके
-साहिर लुधियानवी
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नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
-मीर तक़ी मीर
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएं कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएं कैसे
-वसीम बरेलवी
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
और उस के लिए जो कभी आया न गया हो
-अतहर नफ़ीस
वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
-दाग़ देहलवी
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यूं याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है
-बशीर बद्र
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