तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है
-अमीर मीनाई
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तिरे माथे पे ये आंचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
-असरार-उल-हक़ मजाज़
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कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल
मुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर
-शकील बदायूनी
हक़ीक़त छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से
कि ख़ुशबू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से
-मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तरक़्क़ी
न जाना कि दुनिया से जाता है कोई
बहुत देर की मेहरबान आते आते
-दाग़ देहलवी
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं
-फ़िराक़ गोरखपुरी
जो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए
-ख़ातिर ग़ज़नवी
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